Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 12
________________ श्री वीतरागाय नमः श्रीजैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर श्री घासीलालजी महाराज विरचित द्वितीयश्रुतस्कन्धस्य मर्मप्रकाशिकाख्यया व्याख्यया समलङ्कृतम् ॥ श्री-आचारांगसूत्रम् ॥ प्रथमोद्देशः मूलम्-से भिक्खू वा, भिक्खूणी वा, गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविटे समाणे से जं पुणजाणेज्जा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पाणेहिं वा पणएहि वा बीएहिं वा, हरिएहिं वा संसत्तं उम्मिस्सं सीओदएण वा ओसितं, रयसा वा परिघासियं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा. परहत्थंसि वा परपायंसि वा अफासुयं अणेसणिज्जति मण्णमाणे लाभे वि संते णो पडिगहेजा ॥सू०१॥ छाया -स भिक्षुर्वा, भिक्षुकी वा, गृहपतिकुलं पिण्डपातप्रतिज्ञया अनुप्रविष्टः सन् स यत् पुन: जानीयात, अशनं वा पानं वा खादिमं वा स्वादिमं वा प्राणिभिः पनकैः वा बीजैःया हरिनैः वा संसक्तं वा उन्मिश्रं वा, शीतोदकेन वा अवसिक्तं रजसा वा परिघर्षितं वा तथा प्रकारम् अशनं वा पानं वा खादिमं वा स्वादिमं वा परहस्ते वा परपात्रे वा अप्रासुकम् अनेपणीयम् इति मन्यमानः लाभेसत्यपि नो प्रतिगृह्णीयात् ॥ सू०१॥ ____मर्मप्रकाशिका-टीका-वर्द्धमान महावीर सदाचारविधायिनम् प्रणम्य प्रणिधायाघ गौतमं गणनायकम् ॥१॥ साधुसाध्वी हितार्थाय संघकल्याण हेतवो आचाराङ्गश्रुतस्कन्ध श्रीआचाराङ्ग सूत्रके द्वितीय श्रुतस्कन्ध की हिन्दी व्याख्या सब से पहले भगवान् महावीरस्वामी का नमस्काररूप मंगलाचरण करते हैं'णमोत्थुणं समणस्स भगवओ णायपुत्त-महावीरस्स, विइए सुयक्खंधे द्वितीय श्रुतस्कन्ध के आरम्भ में श्रमण भगवान् ज्ञातपुत्र महावीर को नमस्कार करता हूं। टीकार्थ-नमस्कार के बाद ग्रन्थ का आरम्भ किया जाता है-'से भिक्खू वा, આચારાંગ સૂત્રના બીજા શ્રુતસ્કંધનું ગુજરાતી ભાષાંતર भगवाय-'नमोत्थुणं समणस्स भगवओ णायपुत्तमहावीरस्स, बीइए सुयक्खंधे' मीon શ્રુતસ્કંધના આરંભમાં શ્રમણ ભગવાન જ્ઞાતપુત્ર મહાવીરસ્વામીને નમસ્કાર કરૂં છું. મંગલાચરણ કરીને હવે ગ્રંથને આરંભ કરવામાં આવે છે 'से भिक्खु वा भिक्खुणी वा' त्यादि अ०१ श्री सागसूत्र :४

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