Book Title: Adi Puran Part 2
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 11
________________ विषयानुक्रमणिका पृष्ठ दीक्षा ले ली। वे एक वर्ष का प्रतिमायोग चत्वारिंशत्तम पर्व ले कायोत्सर्ग करते हुए तपश्चरण करते षोडश संस्कार तथा हवनके योग्य मन्त्रोंका रहे । भरत चक्रवर्तीने उनके चरणोंमें अपना वर्णन। २९०-३१६ मस्तक टेक दिया। बाहुबली केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्षको प्राप्त हुए। २००-२२.० एकचत्वारिंशत्तम पर्व सप्तत्रिंशत्तम पर्व कुछ समय व्यतीत होनेपर भरत चक्रधरने एक दिन रात्रिके अन्तिम भागमें अद्भुत फल चक्रवर्तीने बड़े वैभवके साथ अयोध्या नगरमें दिखलानेवाले कुछ स्वप्न देखे । स्वप्न देखनेप्रवेश किया। उनके वैभवका वर्णन। २२१-२३९ के बाद उनका चित्त कुछ त्रस्त हुआ। अष्टत्रिंशत्तम पर्व उनका वास्तविक फल जाननेके लिए वे भगवान् आदिनाथके समवसरणमें पहुँचे । एक दिन भरतने सोचा कि हमने जो वैभव वहाँ जिनेन्द्र वन्दनाके अनन्तर उन्होंने श्री प्राप्त किया है उसे कहाँ खर्च करना आद्यजिनेन्द्रसे निवेदन किया कि मैंने ब्राह्मण चाहिए। जो मुनि हैं, वे तो धनसे निःस्पृह वर्णकी सृष्टि की है। वह लाभप्रद होगी या रहते हैं । अतः अणुव्रतधारी गृहस्थोंके हानिप्रद । तथा मैंने कुछ स्वप्न देखे हैं लिए ही धनादिक देना चाहिए। एक दिन उनका फल क्या होगा ? भरतके भरत चक्रवर्तीने नगरके सब लोगोंको किसी उत्तरमें श्री भगवान्ने कहा कि वत्स! यह उत्सवके बहाने अपने घर बुलाया। घरके ब्राह्मण वर्ण आगे चलकर मर्यादाका लोप अन्दर पहुँचनेके लिए जो मार्ग थे बे हरित करनेवाला होगा यह कहकर उन्होंने स्वप्नोंअंकुरोंसे आच्छादित करा दिये। बहुत-से का फल भी बतलाया, जिसे सुनकर चक्रवर्तीलोग उन मार्गोंसे चक्रवर्तीके महलके भीतर ने अयोध्या नगरीमें वापस प्रवेश किया। प्रविष्ट हुए । परन्तु कुछ लोग बाहर खड़े और दुःस्वप्नोंके फलको शान्तिके लिए जिनारहे । चक्रवर्तीने उनसे भीतर न आने का जब भिषेक आदि कार्य कर सुखसे प्रजाका पालन कारण पूछा तब उन्होंने कहा कि मार्गमें किया। ३१७-३३० उत्पन्न हुई हरी घास आदिमें एकेन्द्रिय जीव होते हैं। हम लोगोंके चलनेसे वे सब मर द्विचत्वारिंशत्तम पर्व जायेंगे अतः दयाको रक्षाके लिए हम लोग एक दिन भरत सम्राट् राजसभामें बैठे हुए भीतर आनेमें असमर्थ हैं। चक्रवर्ती उनके थे । पास ही अनेक अन्य राजा विद्यमान थे। इस उत्तरसे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उस समय उन्होंने विविध दृष्टान्तोंके द्वारा . उन्हें दूसरे प्रासुक मार्गसे भीतर बुलाया और राजाओंको राजनीति तथा वर्णाश्रम धर्मका उन्हें दयालु समझकर श्रावक संज्ञा दी, वही उपदेश दिया। ३३१-३५० ब्राह्मण कहलाये। इन्हें ब्राह्मणोचित क्रियाकाण्ड आदिका उपदेश दिया। अनेक त्रिचत्वारिंशत्तम पर्व क्रियाओंका उपदेश दिया। सबसे पहले यहाँसे गुणभद्राचार्यकी रचना है। सर्वप्रथम गर्भान्वय क्रियाओंका उपदेश दिया। २४०-२६८ उन्होंने गुरुवर जिनसेनके प्रति भक्ति प्रकट कर अपनी लघुता प्रदर्शित की। अनन्तर एकोनचत्वारिंशत्तम पर्व श्रेणिकने समवसरणसभामें खड़े होकर श्री तदनन्तर भरत चक्रवर्तीने दीक्षान्वय गौतम गणधरसे प्रार्थना की कि भगवन् ! क्रियाओंका उपदेश दिया। २६९-२७६ अब में श्री जयकुमारका चरित सुनना चाहता फिर कन्वय क्रियाओंका निरूपण किया। २७७-२८९ हूँ कृपा कर कहिए । उत्तरमें गणधर स्वामी

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