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॥ श्रीः॥ ॥श्री वर्द्धमान भक्तामर स्तोत्र भाषा ॥ ( रचयिता-आर्यजैनमुनि राजेन्द्र)
॥ हरिगीतिका छन्द ।। जो भक्तिवश नत सुशिरोमणि वृद सर मनरम्य है। उस में विविध मणि ज्योतिरूपी जल सदा सुखगम्य है। वे सर विराजित चरण-पंकज मनभ्रमर के हरण हैं। श्रीवर्द्धमान जिनेश के वे चरण-पंकज शरण हैं ॥१॥
(२) आनन्द नन्दनवन मनोहर सुखजनक है हे विभो !। जो मुक्तिदायक चरणयुग मदभाव कारण है विभो !। संसारसागर तरणि सम्यग्ज्ञान गुण की खान है। हे नाथ ! सुन्दर चरण तेरे शरण शुद्ध निदान है ॥२॥