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॥ ॐ नमो सर्वसिद्धम् ॥ श्री मेवाडी मुनी का उद्गार युगप्रधान
आचार्याऽष्टकः
मेवाड तेरी क्या कयूं मैं ? सरस सुन्दर सूक्तियाँ । तेरे गर्भ से अवतरी अनवरत विशुद्ध विभूतिया ।। स्यागी तपस्वी धर्म मूर्ति सुमर प्रातः काल है। आनन्द कन्द दिनिन्द सुरतरु पूज्य घासीलाल है ॥१॥ वीर वर नर केशरी राणा प्रताप हुए जहां । मंत्रीश भामा धर्मरक्षक देशसेवक थे जहां ।। उस देश की सद्गोद में अवतरण किरण प्रवाल है। आनन्द कन्द दिनिन्द सुरतरु पूज्य घासीलाल है ॥२॥ धन्य जननी क्या किया थे उग्रतप किस लोक में ?। धर्म दीपक आगया नर रत्न तेरी कोख में ॥