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(४८) अरि-चोर सिंह गजेन्द्र पन्नग दुष्ट दावानल तथा । जो हिस्र हैं उनके भ्रमण से दुष्ट बन्धन से तथा ।। जो कष्टकर है भूमि उस में शुद्ध भावों को धरे। है आप का शुभ ध्यान उसके भय भयंकर को हरे॥४८॥
मृगराज पन्नग प्रखर-सूकर आदि हिंसक जाल से । भरपूर अटवी जो विकट-चौरादि कण्टक-नाल से ॥ वह सर्व ऋतु के पुष्प-फलसे ऋद्व हो अति शोभती। हे नाथ ! तेरी याद से नन्दन सदृश मन मोहती ।। ४९ ॥
विकट प्रतिभट प्रकट संकट घोर से भी घोर हो । फिर विविध दुःख सहस्र से बल प्रबल का अतिजोर हो ॥ जहां विविध शस्त्राघात से धारारुधिर बहती रही। वहां शान्तिदायक नाम तेरा शान्ति देता है सही॥ ५० ॥