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(४५)
तूं है सकळ मंगल विधायक नाथ ! मैं तुझ को नम् । तूं है सकल सुखशान्ति दायक नाथ ! मैं तुझ को नम् ॥ तूं है सकल निज कर्मनाशक नाथ ! मैं तुझ को नम्रं । हूं है सकल तमरूपक नाथ ! मैं तुझ को न ॥ ४५ ॥ (४६) है सकल जगजीव रक्षक नाथ ! मैं तुझ को नम् । [ है शिवद शासन प्रभाकर नाथ ! मैं तुझ को नमू ं ॥ है सकल जगहित विधायक नाथ ! मैं तुझ को नमूं । हूं है दयानिधि शरण जिनवर ! सर्वदा तुझ को नम् ॥ ४६ ॥ (४७) राक्षस-पिशाच-समूह से भीषण हुए उपसर्ग जो । दुर्वृत्त खळ अतिकष्ट से वर्जित विसर्जित मुष्ट जो ॥ दारिद्रय दुःख से जनित होते कष्टकर अतिकष्ट जो । हे नाथ ! तेरे तेजसे अति शीघ्र होते नष्ट जो ॥ ४७ ॥