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सप्रेम भूमण्डल समागत इन्द्रगण मुनिगण तथा । तव नाथ ! भामण्डल सुवर्णित है किया जो सर्वथा ।। जो मोह-तम संहारकारक सुखसमर्पण कर सके। उसकी सदृशता सूर्यमण्डल नाथ ! कैसे कर सके ।। ३९ ॥
ये विकट कर्मसमूह वैरी के विजेता एक हैं। अतिशय बली अरु त्रिभुश्न के नाथ भी ये एक हैं। आवो जगत के भव्यजन ! इस नाथ का शरणा ग्रहो । ऐसा कह यह दुन्दुभी जो बज रही नभ में अहो ॥ ४० ।
(४१) अत्यन्त उज्ज्वल अरु विजेता शारदीय शशांक के। सम्मोददायक कन्द मंजुल हैं सकल कल्याण के । त्रय छत्र हैं प्रभु! जो तुम्हारे यह निवेदित हैं करे। ये रत्नत्रय हैं शिव विधायक भव्यजन के हित भरे ॥४१॥