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जो जन प्रमादी विषय-मोह-अधीन धर्मविहीन हैं। उन्मार्गगामी प्राणियों के संग में जो लोन हैं ॥ अज्ञानवश जो विषय मदिरासक्त अति दुर्भाव है । सन्मार्ग में लाता उन्हें वह आप का अनुभाव है ॥ २४ ॥ (२५) जो चन्द्ररश्मि समान निर्मल आप के गुण सर्वदा । सुरवृक्ष चिन्तामणि सदृश शुभ कामनापूरक सदा ॥ शुभ ज्ञान आदि अनन्त - हितकर सर्व सौख्य निधान जो । है कौन उनका स्मरण करके सुख न पाते प्राण जो ।। २५ ।। (२६)
शही
हे नाथ ! चिन्तामणि तथा सुवृक्ष नवनिधि सर्व जो । वे हैं विनश्वर क्षणिक लौकिक देत हैं सुख सर्व जो । PIF fps पर आप कि आराधना ध्रुव नित्य सुख देती सदा । जिससे जिनेश्वर । हैं सभी से श्रेष्ठ इस जग में सदा ||२६||
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