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(१५) चण्डकौशिक और सुदर्शन युगल को समभाव से । कौन है तेरे बिना प्रभु ! तार दे संसार से ॥ ऐसी जगत् में वस्तु कोई हो तो दिखलाओ सही । जिसने तुम्हारे चरण की प्रभु ! हो कभी तुलनालही ॥१५॥ (१६)
इसलोक में सबसे सरस आनन्द मंगल कन्द है । जो देशना रूपी सुधारस के अनोखे स्पन्द है ।। प्रभु ! स्वर्ग-मोक्ष प्रदानकारक आप का मुखचन्द है । देखी निरन्तर हर्ष पावे भवि चकोरक वृन्द है ॥ १६ ॥ (१७) कल्याणकारी नाम तेरा भूल से भी जो ग्रहे । हे नाथ ! संपदसिद्धि-सुख और पुण्य सच्चा वो लहे ॥ अज्ञान से यदि खण्ड शक्कर का भी मुख में जात है । मीठाश उसकी जीभ ऊपर सर्वथा रहजात है ॥१७॥