Book Title: Acharang Sutram
Author(s): Devchandrasagarsuri
Publisher: Vardhaman Jain Agam Tirth
View full book text
________________
भिरुपमर्दनादिकः, निवृत्तिः-अप्रमत्तस्य मनोवाक्कायगुप्त्याऽनुपमहादिकेति समासार्थः । व्यासार्थं तु नियुक्तिकृद्यथाक्रममाह
नाम ठवणापुढवी दव्वपुढवी य भावपुढवी य । एसो खलु पुढवीए निक्खेवो चउविहो होइ ॥६९ ।।
स्पष्टा, नामस्थापने क्षुण्णत्वादनादृत्याहदव्वं सरीरभविओ भावेण य होइ पुढविजीवो उ । जो पुढविनामगोयं कम्मं वेएइ सो जीवो ७० ।।
द्रव्यपृथिवी आगमतो नोआगमतश्च, आगमतो ज्ञाता तत्र चानुपयुक्तः, नोआगमतस्तु पृथिवीपदार्थज्ञस्य शरीरं जीवापेतं तथा पृथिवीपदार्थज्ञत्वेन भव्यो-बालादिस्ताभ्यां विनिर्मुक्तो द्रव्यपृथिवीजीव:एकभविको बद्धायुष्कोऽभिमुखनामगोत्रश्च, भावपृथिवीजीवः पुनर्यः पृथिवीनामादिकर्मोदीर्णं वेदयति । गतं निक्षेपद्वारं, साम्प्रतं प्ररूपणाद्वारम्
दुविहा य पुढविजीवा सुहुमा तह बायरा य लोगंमि । सुहुमा य सव्वलोए दो चेव य बायरविहाणा ॥७१।।
पृथिवीजीवा द्विविधा:-सूक्ष्मा बादराश्च, सूक्ष्मनामकर्मोदयात् सूक्ष्माः , बादरनामकर्मोदयात्तु बादरा:, कर्मोदयजनिते एवेषां सूक्ष्मबादरत्वे न त्वापेक्षिके बदरामलकयोरिव ।। तत्र सूक्ष्मा: समुद्कपर्याप्तप्रक्षिप्तगन्धावयववत् सर्वलोकव्यापिन:, बादरास्तु मूलभेदाद्विविधा इत्याह
दुविहा बायरपुढवी समासओ सण्हपुढवि खरपुढवी । सण्हा य पंचवण्णा अवरा छत्तसइविहाणा ॥७२॥
‘समासत:' संक्षेपाद्विविधा बादरपृथिवि-श्लक्ष्णबादरपृथिवी खरबादस्पृथिवी च, तत्र श्लक्ष्णबादरपृथिवी कृष्णनीललोहितपीतशुक्लभेदात्पञ्चधा, इह च गुणभेदाद्गुणिभेदोऽभ्युपगन्तव्यः, खरबादरपृथिव्यास्त्वन्येऽपि षट्त्रिंश-द्विशेषभेदाः सम्भवन्तीति ।। तानाहपुढवी य सक्करा वालुगा य उवले सिला य लोणूसे । अय तंब तउअ सोसग रुप्प सुवण्णे य वइरे य ॥७३॥
श्री आचारांग सूत्रम्
(०५५)

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146