________________ (3) हास्य एवं हर्ष-शोक का सर्वथा त्याग करके गम्भीर बने / .(4) प्रात्म निग्रह कर एवं प्रात्मा को ही सच्चा मित्र समझकर सही पुरूषार्थ करने से दुःख संसार को पार किया जा सकता है। (5) ज्ञानी साधक कभी भी मान पूजा, सत्कार का इच्छुक न बने और दुःख के पहाड़ पा जाने पर भी प्रसन्न मन रहे / चतुर्थ उद्देशक: (1) सर्वज्ञ भगवान् का कथन है कि चारों कषायों का वमन कर देना चाहिए। (2) प्रमादी को सर्वत्र भय रहता है अप्रमादी ही निर्भय रहता है। (3) सांसारिक, प्राणियों के दुःखों का अनुभव कर के वीर पुरूष सदा संयम में प्रागे ही बढ़ते है.। (4) एक-एक पाप का या अवगुण का सर्वथा त्याग करते रहने वाला पूर्ण त्यागी बन सकता है। (5) क्रोधादि कषाय, राग, द्वेष एवं मोह का त्याग करना ही वास्तव में गर्भ, जन्म, नरक एवं तिथंच के दुःखों का त्याग करना है। (6) वीतराग वाणी के अनुभव से जो सम्यगदृष्टा बन जाता है उसके कोई उपाधि नहीं रहती है। चौथे अध्ययन का सारांश:-- प्रथम उद्देशकः-- (1) धर्म का सार यही है कि किसी भी छोटे-बड़े प्राणी को किसी भी प्रकार से दुःख पीड़ा कष्ट नहीं देना-यह सर्वज्ञों की प्राज्ञा है। अर्थात्-सब जीव रक्षा यही परीक्षा धर्म उसको जानिए।