________________ (46) मृदुता, लघुता, नरमाई, कौमलता के स्वभाव को धारण करने से--१. जीव उद्धत भाव या उद्दण्ड स्वभाव वाला नहीं होता है / 2. अोर वह व्यक्ति आठ प्रकार के मद (घमण्ड) के स्थानों का विनाश कर देता है। (50) अंतरात्मा में सच्चाई धारण करने से--१. जीव भावों की विशुद्धि को प्राप्त करता है। 2. अहंत भाषित धर्म का और परलोक का पाराधक होता है। (51) ईमानदारी पूर्वक कार्य करने से--१. जीव अपूर्वअपूर्व कार्य करने की क्षमता को प्राप्त करता है / 2. तथा उसकी कथनी और करणी एक हो जाती है / (52) मन वचन और काया की सच्चाई धारण करने से-- जीव अपनी सभी प्रवृतियों को विशुद्ध करता है। (53) मन का गोपन करने से अर्थात् अशुभ मन को रोक कर उसे शुभ रूप में परिणत करते रहने से-१. जीव चित्त की एकाग्रता वाला बनता है। 2. अशुभ संकल्पो से मन की रक्षा कर संयम की आराधना करता है। (54) वचन का गोपन करने से, अर्थात् मौन व्रत धारण करने सें---१. जीव विचार सून्यता को प्राप्त करता है अर्थात् घाट घड़ों से मुक्त बनने में अग्रसर होता है 2. और उसे प्राध्यात्म योग और शुभ ध्यान की प्राप्ति होती है। (55) काया के गोपन से अर्थात् अंगोपांगों के संगोपन से१. कायिक स्थिरता को प्राप्त करता है। 2. एवं पापाश्रवों का निरोध करता है। (56) मन को पागम कथित भावों में भली-भांति लगाने से - 1. जीव एकाग्रता और ज्ञान की विशिष्ट क्षमता को प्राप्त