Book Title: Acharang Sutra Saransh
Author(s): Agam Navneet Prakashan Samiti
Publisher: Agam Navneet Prakashan Samiti

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Page 55
________________ (63) चारों कषायों पर विजय प्राप्त कर लेने से-- 1. साधक क्रमशः क्षमा, नरमाई, सरलता और निर्लोभता गुरण से सम्पन्न बन जाता है / 2 और तत्जन्य कर्म बन्ध नहीं करता हुमा पूर्व कर्मों का क्षय करता है। (64) राग-द्वेष और मिथ्यात्व पाप पर विजय प्राप्त करने से अर्थात् इन परिणामों का क्षय कर देने से-१. साधक रत्नत्रय की पाराधना में उपस्थित होता है। 2. फिर मोह, कर्म प्रादि का क्षय कर सर्वज्ञ सर्वदर्शी बनता है। 3. उसके केवल दो समय की स्थिति वाले शाता वेदनीय का ही बंद होता है / 5. अंतमुहुर्त प्रायु शेष रहने पर केवली तीनों योग और श्वासोश्वास का निरोध करता है / 6. जिससे उसके प्रात्म प्रदेश शरीर के दो तिहाई अवगाहना में स्थित हो जाते है / अर्थात् फिर प्रात्म प्रदेशों का शरीर में भ्रमण भी बंद हो जाता है। 7. अंत में सम्पूर्ण कर्म क्षय करके एवं शरीर का त्याग करके वह जीव शास्वत सिद्ध अवस्था को प्राप्त कर लेता है। सम्यक् पराक्रम नामक-इस अध्ययन के इन स्थानों में साधक को यथा शक्ति यथा समय सम्यक् तथा पराक्रम करते ही रहना चाहिए। ऐसा करने से ही संयम में उपस्थित होने वाला वह साधक प्रात्म कल्याण साध कर सदा के लिए कृतकृत्य बन जाता है। नोट-उत्तराध्ययन सूत्र के साथ यह सार देना किसी कारण वश छूट जाने से यहां आचारांग सूत्र के साथ दिया गया है / पाठक क्षमा करें। संपादक

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