Book Title: Acharang Sutra Saransh
Author(s): Agam Navneet Prakashan Samiti
Publisher: Agam Navneet Prakashan Samiti

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Page 54
________________ 52 करता है। 2. तथा वह सम्यक्त्व की विशुद्धि और मिथ्यात्व का क्षय करता है। (57) वाणी को स्वाध्याय में भली-भांति लगाने से-- 1. भाषा से संबन्धित सम्यक्त्व के विषय की विशुद्धि होती है 2. उसे सुलभ बोधि की प्राप्ति होती है और दुर्लभ बोधि का क्षय होता है। (58) संयम योगों में काया को भली-भांति लगाने से१. चारित्र की विशुद्धि होती है और सर्व दुःखों से मुक्ति की प्राप्ति होती है। (56) आगम ज्ञान से सम्पन्न बनने से-१. साधक विशाल तत्वों का ज्ञाता बन जाता है। 2. सूत्र ज्ञान से सम्पन्न जीव डोरे युक्त सूई के समान संसार में सुरक्षित रहता है अर्थात् कहीं भी खोता या भटकता नहीं है। 2. सिद्धान्तों में कोविद बना हुमा वह ज्ञानी लोगों में प्रामाणिक एवं प्रालंबन भूत पुरुष माना जाता है। (60) जिन प्रवचन में गाढ श्रद्धा सम्पन्न होने से-१. प्राणी मिथ्यात्व का विच्छेद कर देता है एवं 2. क्षायिक सम्यक्त्व को प्राप्त करता है अर्थात् उसका सम्यक्त्व रूपी दीपक कभी बुझता नहीं है / तथा वह 3. ज्ञान दर्शन की उत्तरोत्तर वृद्धि करता हुआ अणुत्तर ज्ञान दर्शन प्राप्त करता है। (61) चारित्र से सुसम्पन्न बनने से--जीव शैलेशी अवस्था को प्राप्त कर अंत में मोक्ष प्राप्त करता है। (62) पांचों इन्द्रियों का निग्रह करने से-१. जीव मनोज्ञ अमनोज्ञ इन्द्रिय विषयों के उपस्थित होने पर भी राग द्वेष और कर्म बन्ध नहीं करता है।

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