Book Title: Acharang Sutra Saransh
Author(s): Agam Navneet Prakashan Samiti
Publisher: Agam Navneet Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ पू० (42) वेश के अनुसार ही प्राचार विधि का ईमानदारी पूर्वक पालन करने से अथवा अचेलकता धारण करने से-१. साधक हल्के पन को प्राप्त करता है। 2. स्पष्ट एवं विश्वस्त लिंग वाला होता है। 3. अप्रमत्त भावों की वृद्धि होती है / 4. वह साधक जितेन्द्रिय, समितिवंत एवं विपुल तप वाला हो जाता है / 4. सभी प्राणियों के लिए विश्वसनीय हो जाता है। (43) साधुओं की सेवा सुश्रुशा करने ने-- तीर्थकर नामकर्म बंध रुप पुण्योपार्जन होता है / / (44) विनयादि सर्व गुणों से सम्पन्न हो जाने से--१. जीव उत्तरोत्तर मुक्ति गमन के निकट हो जाता है एवं 2. शारीरिक मानसिक दुःखों का भागी नहीं बनता है। (45) वीतराग भावों में रमण करने से--१. जीव स्नेह एवं तृष्णा के अनुबंधनों से मुक्त हो जाता है और 2. मनोज्ञ अमनोज्ञ शन्द रूप आदि के संयोग होने पर भी खरा बिरक्त भावों से निस्पृह बना रहता है। (46) क्षमा धारण करने से-- व्यक्ति कष्ट उपसर्ग एवं परीषहों के उपस्थित हो जाने पर दुःखी नहीं बनता अपितु परीषह जेता बनकर प्रसन्न रहता है। (47) निर्लोभी बनकर रहने से--१. प्राणी अकिंचन निष्परिगृही और सच्चा फकीर बन जाता है / 2. ऐसे सच्चे साधक से अर्थ लोलुपी लोग कुछ भी चाहना या याचना नहीं करते / (48) सरलता धारण करने से--१. भाषा में और काया में तथा भावों में सरलता एक-मेक बन जाती है। 2. ऐसे व्यक्ति का जीवन विवाद रहित बन जाता है। 3. और वह धर्म का सच्चा आराधक बनता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60