________________ उत्तराध्ययन सूत्र सम्यक पराक्रम नामक उन्तीसवें अध्ययन का सारांश: (1) वैराग्य भावों की वृद्धि करने एवं संसार से उदासीन बनने से-१. उत्तम धर्म श्रद्धा की प्राप्ति होती है / 2. उससे पुनः वैराग्य की वृद्धि होती है। 3. तीव्र कषाय भावों की समाप्ति एवं 4. नये कर्म बन्ध की अल्पता हो जाती है। 5. सम्यक्त्व की उत्कृष्ट पाराधना करने वाले कई जीव उसी भव में और कई जीव तीसरे भव में मोक्ष प्राप्त करते है। (2) निवृति की वृद्धि और त्याग व्रत की वृद्धि करने से१. पदार्थो के प्रति अनाशक्ति भाव पैदा होता है। 2. इन्द्रिय विषयों में विरक्ति भाव हो जाता है। 3. हिंसादि प्रवतियों का त्याग होता है / 4. एवं संसार का अंत और मोक्ष की उपलब्धि होती है। (3) धर्म की सच्ची श्रद्धा हो जाने पर-१. सुख सुविधा के प्रति लगाव की कमी होती है। 2. संयम को स्वीकार किया जाता है। 3. शारीरिक मानसिक दुःखों का विच्छेद हो जाता है और 4. बाधारहित सुख की प्राप्ति होती है / (4) गुरू एवं सहवर्ती साधुओं की सेवा से--१. कर्तव्य का पालन होता है 2. पाशातनाओं से प्रात्मा की रक्षा होती है। 3. पाशातना नहीं होने से दुर्गति का निरोध होता है / 4. उनकी गुण कोति, भक्ति-बहुमान करने से सद्गति की प्राप्ति या सिद्ध गति की प्राप्ति होती है / 5. विनयमूलक अनेक गुणों की उपलब्धि होती है / 6. और अन्य जीवों के लिए विनय सेवा का प्रादर्श उपलब्ध होता है।