Book Title: Acharang Sutra Saransh
Author(s): Agam Navneet Prakashan Samiti
Publisher: Agam Navneet Prakashan Samiti

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Page 43
________________ पांचवें महाव्रत की पांच भावना:-- (1) शब्द (2) रूप (3) गंध (4) रस (5) स्पर्श इन पांचों विषयों का संयोग नहीं जुटाना और स्वाभाविक संयोग होने पर राग भाव या पाशक्ति भाव नहीं करना / सोलहवें अध्ययन का सारांश:-- यह विमुक्ति नामक अंतिम अध्ययन है। इस में मोक्ष प्राप्ति की प्रेरणा एवं उसके उपाय सूचित किए हैं। (1) अनित्य भावना से भावित होकर प्रारंभ परिग्रह का त्याग करना। (2) होलना वचन आदि पुरूष शब्दों रूपी तीरों को संग्राम शीर्ष हस्ति के समान सहन करें। (3) तृष्णा रहित. बन कर ध्यान करना जिससे तप, प्रज्ञा, यश की वृद्धि होती है। (4) क्षेमकारी महावतों का यथावत् पालन करना। . (5) कहीं पर भी स्नेह भाव नहीं करना, स्त्रियों में प्रासक्ति नहीं करना / पूजा प्रतिष्ठा की चाह का त्याग करना / (6) ऐसे साधक के कर्म मैल अग्नि से चांदी के मैल के समान साफ हो जाते हैं। . (7) प्राशाओं का त्याग करना, सर्प के जीर्ण त्वचा त्याग के समान सभी ममतादि का त्याग करने वाला दुःखशय्या से मुक्त हो जाता है। (8) दुस्तर समुद्र के समान संसार सागर को मुनि तर जाते हैं। (9) बंध विमोक्ष के स्वरूप को जान कर मुनि मुक्त होते हैं। (10) जिनका इस लोक परलोक में राग भाव का बंधन किंचित भी नहीं हैं वे संसार प्रपंच से मुक्त हो जाते हैं।

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