Book Title: Acharang Sutra Saransh
Author(s): Agam Navneet Prakashan Samiti
Publisher: Agam Navneet Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 41
________________ (3) इसी प्रकार कोई गहस्थ अशुद्ध या शुद्ध मंत्र से चिकित्सा करे अथवा सचित कंदादि से चिकित्सा करे तो भी निषेध कर देना। (4) प्रत्येक प्राणी अपने कर्मों को उपाजित कर फिर उसके विपाक-फल (परिणाम) अनुसार वेदना वेदते हैं। यह जानकर समभाव से सहन करना एवं संयम तप में सम्यक प्रकार से रमण करना चाहिए। चौदहवें अध्ययन का सारांश:-- साधु परस्पर भी शरीर परिकर्म आदि क्रियाएँ न करें। जिनका वर्णन तेरहवें अध्ययन के समान है / पंद्रहवें अध्ययन का सारांश: इस अध्ययन में प्रभु महावीर के पारिवारिक जीवन का जन्म से लेकर दीक्षा तक का संक्षिप्त परिचय है। दीक्षा महोत्सव का भी वर्णन है ( संभवतः यह वर्णन पyषणा कल्प सूत्र से यहां कभी प्रक्षिप्त हुआ है-क्योंकि आचार वर्णनों के साथ यह अप्रासंगिक है तथा इस विषय पर व्याख्याएं भी नहीं की गई है। अन्यत्र विस्तृत वर्णन होने से यहां अनावश्यक भी है ) केवल ज्ञान प्राप्ति के बाद पाँच महाव्रत के स्वरूप एवं भावनाओं के कथन तक संबन्ध जोड़ा गया है। प्रथम महाव्रत की पांच भावनाः-- (1) ईर्या समिति युक्त होना (2) प्रशस्त मन रखना (3) प्रशस्त वचन, सत्य वचन और असावध वचन प्रयोग करना (4) किसी भी पदार्थ को ग्रहण करना, रखना-छोड़ना, आदि प्रवृतिएं यतना पूर्वक करना (5) आहार पानी को अच्छी तरह अवलोकन कर खाना-पीना।

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60