________________ 28 (5) जहां ठहरा हो वहां या उसके पास पास की भूमि में उसके स्वामी की आज्ञा लिए बिना मलोत्सर्ग नहीं करना। . (6) आवश्यक होने पर स्वयं के या अन्य भिक्षु के उच्चार मात्रक को लेकर उपाश्रय के किसी एकान्त स्थान में बैठकर उस पात्र में मलोत्सर्ग करना। फिर योग्य भूमि में परिष्ठापन करना। ग्यारहवें अध्ययन का सारांशः - इस अध्ययन में शब्द श्रवण सम्बन्धी वर्णन है। (1) तत, वितत, घन झसिर इन चार प्रकार के वाद्यों की आवाज सुनने नहीं जाना / अन्य भी अनेक स्थानों, व्यक्तियों एवं पशुओं की आवाज सुनने नहीं जाना। (2) स्वाभाविक ही जो शब्द सुनाई दे तो उसमें प्रासक्ति भाव नहीं लाना। बारहवें अध्ययन का सारांश:-- (1) इस अध्ययन में रुप देखने अर्थात् दर्शनीय स्थानों को देखने के लिए जाने का निषेध पूर्व अध्ययन के समान है। (2) स्वाभाविक ही जो विषय दृष्टिगोचर हो तो उसमें आसक्तिभाव नहीं करना। तेरहवें अध्ययन का सारांश:-- इस अध्ययन में परकिरिया सम्बन्धी वर्णन है। (1) कोई भी गृहस्थ साधु के शरीर पर सुश्रुषा-परिचर्चा प्रवृति करे तो उसे मना कर देना तथा स्वयं भी कहकर नहीं कराना। ___ (2) इसी प्रकार शल्य चिकित्सा, मैल निवारण, केस-रोम कर्तन, जू-लीख निष्काशन आदि प्रवृति के विषय में भी समझ लेना।