________________ (2) स्वस्थ भिक्षु इनमें से किसी एक जाति का ही पात्र धारण करे। (3) सोना, चांदी, लोहा आदि धातु के एवं कांच, मणि, दांत, वस्त्र, पत्थर, चर्म आदि के पात्र लेना भिक्षु को नहीं कल्पता है। - शेष वर्णन वस्त्र के समान पात्र के लिए समझ लेना। सातवें अध्ययन का सारांश:-- इस अध्ययन में प्रवग्रह (प्राज्ञा लेने) सम्बन्धी वर्णन है। (1) भिक्षु को कोई भी वस्तु प्रदत्त ग्रहण नहीं करना / देने पर या आज्ञा लेकर ग्रहण करना कल्पता है। (2) साधार्मिक सहचारी श्रमणों के उपकरण भी बिना प्राज्ञा लेना नहीं कल्पता है। (3) मकान के स्वामी की या उसने जिसे सुपुर्द किया है उसकी अथवा जिसकी प्राज्ञा लेना उसे सम्मत हो उसकी आज्ञा लेना। (4) मकान की सीमा, परिष्ठापन भूमि, समय की मर्यादा का स्पष्टीकरण भी करना / (5) सांभोगिक साधु आये तो उन्हें स्थान, संस्तारक, आहार पानी देना, निमंत्रण करना / (6) अन्य सांभोगिक साधु aa जावे तो उन्हें स्थान संस्तारक पाट आदि देना निमंत्रण करना। (7) यदि श्रमण ब्राह्मण युक्त उपाश्रय या कमरा मिला हो तो उनको किसी भी प्रकार से अप्रीति, विरोध भाव उत्पन्न न हो उस तरह विवेक पूर्वक रहना। (8) लहसुण, इक्षु प्राम की बहुलता वाले स्थान में ठहरा