Book Title: Acharang Sutra Saransh
Author(s): Agam Navneet Prakashan Samiti
Publisher: Agam Navneet Prakashan Samiti

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Page 36
________________ 34 . (7) अन्य कटुक वचन या संबोधन ( कोढी, रोगी, अंधे आदि) नहीं बोलना / शुभ संबोधन वचन ( यशस्वी भाग्यशाली आदि) कहना। (8) रमणीय आहार, पशुपक्षी आदि की सुन्दरता की प्रशंसा नहीं करना तथा अन्य भी पशुपक्षी धान्यादि के सम्बन्ध में अनावश्यक, सावध या पीडाकारी वचन नहीं बोलना / (9) शब्द रूप आदि के विषय में राय या द्वेष भाव युक्त प्रसंशा या निन्दा न करना / इस प्रकार कषाय भावों से रहित, विचार पूर्वक, उतावल रहित विवेक के साथ आवश्यक असावध वचनों का प्रयोग करना चाहिए। पांचवें अध्ययन का सारांश: इस अध्ययन में वस्त्र सम्बन्धी वर्णन है। (1) १-त्रस जीवों (विकलेंद्रय एवं पंचेन्द्रिय) के लार या केशों से बने वस्त्र, २-अलसी बांस प्रादि से निष्पन्न वस्त्र ३सण आदि से निश्पन्न वस्त्र, ४-ताड आदि के पत्रों से निश्पन्न वस्त्र ५-कपास (रुई) से बने वस्त्र, ६-पाक आदि की रुई से बने वस्त्र / इनमें से स्वस्थ भिक्षु को किसी भी एक प्रकार के वस्त्र धारण करना कल्पता है। व्याख्याकारों ने कपास के वस्त्र को प्राथमिकता दी है तदन्तर ऊनी वस्त्र को ग्राह्य कहा है। इन दोनों प्रकार के वस्त्रों के उपलब्ध होने पर अन्य जाति के वस्त्रों को ग्रहण नहीं करना चाहिए, ऐसा निर्देश किया है। (2) दो कोष से प्रागे वस्त्र याचना करने नहीं जाना। (3) प्रौद्देशिक दोष युक्त वस्त्र नहीं लेना। (4) क्रीत प्रादि दोष युक्त वस्त्र नहीं लेना किंतु भिक्षु के

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