Book Title: Acharang Sutra Saransh
Author(s): Agam Navneet Prakashan Samiti
Publisher: Agam Navneet Prakashan Samiti

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Page 37
________________ लक्ष्य के बिना गृहस्थ के उपयोग में प्रा जाने पर उसे लेना कल्पता है। (5) सामान्य जन परिभोग्य बहुमूल्य वस्त्र नहीं लेना। (6) संकल्पित, 2. सामने दिखने वाले, 3. कुछ उपयोग में पाए या 4. पूर्ण रूप से गहस्थ के उपयोग रहित बने वस्त्रों को ग्रहण करने की विशिष्ट प्रतिज्ञा-अभिग्रह करना / (7) गृहस्थ वस्त्र के लिए बाद में पाने का समय देकर बुलावे तो स्वीकार नहीं करना एवं उसी समय बिना किसी प्रकार की प्रक्रिया (वस्त्र को धोना, सवासित करना) किए बिना दें तो लेना। 18) वस्त्र में से सचित पदार्थ खाली करके दे तो नहीं लेना। (9) पूर्ण निर्दोष वस्त्र को वहां पर ही पूरा खोलकर देख कर लेना। (10) जीव रहित एवं उपयोग में प्राने योग्य वस्त्र लेना। (15) वस्त्र लेने के बाद तुरन्त ही धोना आदि कार्य न करना पड़े वैसा ही वस्त्र लेना। (12) कभी वस्त्र धोकर सुखाना हो तो जीव विराधना युक्त स्थान में या चौतरफ खुले आकाश वाले ऊंचे स्थान में नहीं सुखाना। (13) वस्त्र के सम्बन्ध में माया-छल प्रवृति नहीं करना एवं फाड़ना, सीना, अदल-बदल करना आदि निरर्थक प्रवृतिएं भी नहीं करना। छठे अध्ययन का सारांश:-- इस अध्ययन में पात्र सम्बन्धी वर्णन है। (1) लकडी-तुम्बा-मिट्टी इन तीन जाति के पात्र लेना कल्पता है।

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