Book Title: Acharang Sutra Saransh
Author(s): Agam Navneet Prakashan Samiti
Publisher: Agam Navneet Prakashan Samiti

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Page 35
________________ (55) प्राचार्य या रत्नाधिक साधुनों के साथ विनय एवं विवेक के साथ चलना एवं बोलने का भी विवेक रखना। (16) प्रतिपथिक के द्वारा जानवरों, अग्नि, जल के सम्बन्ध में, या मार्ग की लम्बाई श्रादि के सम्बन्ध में पूछने पर उत्तर न देते हुए मौन पूर्वक उपेक्षा भाव से गमन करना। (17) मार्ग में चोर लुटेरे श्वापद आदि से भयभीत हो घबराकर भाग दौड़ करना नहीं / धैर्य एवं विवेक के साथ गमन करना। चौथे अध्ययन का सारांश:--- इस अध्ययन में भाषा सम्बन्धी वर्णन है / (1) क्रोध, मान, माया और लोभ युक्त वचन बोलना, जानकर या अनजान से कठोर वचन बोलना, ये सभी सावध भाषा है / ऐसी भाषा नहीं बोलना। (2) निश्चयकारी भाषा नहीं बोलना एवं अशुद्ध उच्चारण न करके विचारपूर्वक शुद्ध स्पष्ट भाषा बोलना। (3) सत्य और व्यवहार दो प्रकार की भाषा बोलना। वह भी सावध, सक्रिय, कर्कष, कठोर, निष्ठर, छेदकारी, भेदकारी न हो ऐसी भाषा बोलना / (4) एक बार या अनेक बार बुलाने पर भी कोई न बोले तो भी उसके लिए हीन एवं अशुभ शब्द प्रयोग नहीं करना अपितु उच्च शब्द एवं संबोधन का प्रयोग करना / (2) अतिशयोक्ति युक्त वचन नहीं बोलना। (6) वर्षा, सर्दी, गर्मो, हवा, सुकाल, दुष्काल, रात्रि, दिन अादि प्राकृतिक प्रवृतियों के सम्बन्ध में होने या न होने के संकल्प अथवा वचन प्रयोग नहीं करना /

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