________________ हो और कभी वे पदार्थ ग्रहण करने हों तो अचित और दोष रहित होने पर उन्हें ग्रहण करना कल्पता है। (6) व्यक्ति की अपेक्षा आज्ञा पांच प्रकार की है-१. देवेन्द्र की, 2. राजा की, 3. शरूयातर की, 4. गृहस्थ की, 5. सार्मिक साधु की। आठवें अध्ययन का सारांश: - (1) इस अध्ययन में खड़े रहकर कार्योत्सर्ग करने की प्रतिज्ञा सम्बन्धी वर्णन है / उसी के लिए योग्य स्थान ग्रहण करने का सम्पूर्ण वर्णन दूसरे अध्ययन के समान है। (2) इस प्रतिज्ञा वाला आलंबन लेकर खड़ा हो सकता है / हाथ-पांव का संचालन कर सकता है मर्यादित भूमि में संचरण भी कर सकता है एवं पूर्ण निश्चल आलंबन रहित कयोत्सर्ग भी यथा समय करता है किन्तु बैठता नहीं एवं सोता भी नहीं। नवमें अध्ययन का सारांश: (1) इस अध्ययन में बैठने सम्बन्धी या स्वाध्याय सम्बन्धी चर्या का कथन है / योग्य स्थान की याचना विधि पूर्ववत है। दशवें अध्ययन का सारांश:---- - इस अध्ययन में मल त्यागने एवं परठने सम्बन्धी वर्णन है / (1) उच्चार-प्रस्रवण (मलोत्सर्ग) की बाधा होने पर, मलद्वार पोंछने का वस्त्र खण्ड स्वयं के पास न हो तो अन्य साधु से लेवें। (2) जीव रहित प्रचित निर्दोष भूमि में जावे / (3) स्वयं को असुविधाकारी या अन्य को अमनोज्ञ लगे ऐसे स्थान पर नहीं जाना। _(4) मनोरंजन के या उपभोग में आने के अथवा फल धान्य मादि सग्रह के स्थानों में या उनके पास-पास भी नहीं जाना।