Book Title: Acharang Sutra Saransh
Author(s): Agam Navneet Prakashan Samiti
Publisher: Agam Navneet Prakashan Samiti

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Page 47
________________ प्रशस्त ध्यान में लीन होकर उत्तरोत्तर सुख पूर्वक विचरण करता है। (13) प्रत्याख्यान करने से--प्राश्रवों का निरोध होता है जिससे कर्म बंध कम हो जाता है। (14) सिद्ध स्तुति- णमोत्थुणं का पाठ करने से---१. ज्ञान दर्शन चारित्र संबंधी विशिष्ट बोधि (ज्ञान) की प्राप्ति होती है। 2. एवं ऐसी बोधि से संपन्न जीव आराधना के योग्य बनता है। (15) प्रायश्चित ग्रहण करने से-१. चारित्र निरतिचार हो जाता है / 2. पापाचरणों का विशोधन हो जाता है। 3. सम्यग् ज्ञान की उपलब्धि और चारित्र की सम्यग् आराधना हो जाती है। (16) स्वाध्याय काल पाया या नहीं यह जानकारी करने से एवं अस्वाध्याय के कारणों की निणित जानकारी करने सेज्ञानावरणीय कर्मों का क्षय होता है। (17) क्षमा याचना कर लेने से---१. प्राह्लाद पूर्ण मनोभाव हो जाता है अर्थात् चित्त को प्रसन्नता हो जाती है / 2. सभी प्राणियों के प्रति मैत्री भाव की उपलब्धि होती है। 3. मन की निर्मलता हो जाने पर वह प्राणी सर्वत्र निर्भय बन जाता है। (18) स्वाध्याय से--ज्ञानावरणीय कर्म की निर्जरा होती है / (16) वाचना-प्राचार्य या उपाध्याय से मूल पाठ एवं अर्थ की वाचना लेने से--१. सर्वतोमुखी कर्मों का क्षय होता है / 2. वाचना लेने वाला श्रुत की उपेक्षा दोष से और अशातना दोष से बच जाता है अर्थात् सूत्रों की वाचना लेने वाले की श्रुत के प्रति भक्ति भाव की वृद्धि होती है और सम्यग् शास्त्र वांचना लेकर बहुश्रुत हो जाने से उसके द्वारा सहसा अज्ञान दोष से श्रुत की अाशातना नहीं होती है / 3. वह सदा श्रुतानुसार सत्य निर्णय करने वाला बन जाता है तथा 4. वह भगवान् के शासन का

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