________________ 31 (8) यदि कभी छोटा और अनेक वस्तुओं से व्याप्त स्थान मिला है तो अंधेरे में गमनागमन करते समय पहले हाथ से देखकर अनुमान करके फिर चलना चाहिए। (6) अधिक चित्रों या लेखों युक्त उपाश्रय में नहीं ठहरना / (10) पाट या घास भी जीव रहित, हल्का, प्रत्यर्पणीय एवं सुयोग्य हो तो ग्रहण करना। इन्हें लौटाते समय प्रतिलेखन करके पावश्यक हो तो धप लगाकर जीव रहित होने पर देना / (11) सोने बैठने की जगह और पाट प्रादि दीक्षाप्रर्याय के क्रम से ग्रहण करना एवं प्राचार्य आदि पूज्य पुरूषों तथा रूग्रण, तपस्वी आदि के ग्रहण करने के बाद ग्रहण करना। (12) मल-मूत्र परठने की भूमि पास-पास में हो ऐसे स्थान में ही ठहरना / (13) शरीर एवं शय्या का प्रमार्जन करके किसी के हाथ पाँव न लगे ऐसे यतना पूर्वक शयन करना। खांसी छींक उबासी वायुनिसर्ग प्रादि हो तो मुंह को या गुदा भाग को हाथ से ढंक कर उक्त प्रवृतियां करना / (14) अनुकूल प्रतिकूल शय्या में समभाव पूर्वक समय व्यतीत करना। तीसरे अध्ययन का सारांश:-- इस अध्ययन में विचरण सम्बन्धी वर्णन है। (1) वर्षा हो जाने पर एवं हरी घास व त्रस जीवों की उत्पत्ति अधिक हो जाने पर या विराधना रहित मार्गों के अनुपलब्ध हो जाने पर प्राषाढी पूर्णिमा के पूर्व भी चातुर्मास के लिए ठहर जाना चाहिए। (2) जहां पाहार, पानी, मकान, परठने की भूमि, स्वाध्याय भूमि आदि सुलभ हों ऐसे क्षेत्र में चातुर्मास करना।