Book Title: Acharang Sutra Saransh
Author(s): Agam Navneet Prakashan Samiti
Publisher: Agam Navneet Prakashan Samiti

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Page 31
________________ 24 (3) अच्छा-अच्छा (सरस-स्वादिष्ट ) प्राहार-पानी खानापीना और खराब (अमनोज्ञरुक्ष नीरस) को परठ देना ऐसा करना नहीं कल्पता है। (4) अधिक आहार प्रा जाय तो अन्य साधुनों को निमंत्रण किये बिना नहीं परठना। (5) किसी की निथा के आहार को या निमित किये गये पाहार को उसे पूछे बिना अन्य द्वारा नहीं लेना / दशवां उद्देशकः-- (1) सामान्य आहार में से किसी को देने में अपनी मनमानी नहीं करना किन्तु उनकी आज्ञा लेकर के ही किसी को देना / (2) व्यक्तिगत गोचरी हो तो पाहार दिखाने में निष्कपट भाव रखना। (3) इक्षु प्रादि उज्झित धर्मा (जिसमें बहुत भाग फेका जाता है ऐसे) पदार्थ नहीं लेना। (4) भूल से कोई अचित पदार्थ ग्रहण किय गया हो तो पुनः दाता की आज्ञा प्राप्त करके उनको खाना। यदि अनुपयोगी हो तो लौटा देना। ग्यारहवां उद्देशकः-- (1) किसी रुग्ण भिक्षु के लिए भेजे गये आहार में स्वार्थ वृत्ति नहीं रखना, निःश्वार्थ सेवा करना / (2) भोजन सम्बन्धी 7 अभिग्रह (पिंडेषणा) है-(१) सलेप हाथादि से लेना (2) अलेप हाथादि से लेना (3) मूल बर्तन से लेना। (4) अलेप्य पदार्थ लेना (5) अन्य परोसने के बर्तन से लेना / (6) खाने के थाली आदि से लेना (7) फेंकने योग्य आहार लेना ऐसी ही सात पाणेषणा जानना।

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