________________ 32 (3) चातुर्मास समाप्ति के बाद मार्ग जीव विराधना रहित हो जाय तब विहार करना। (4) जीव रक्षा एवं यतना करते हुए, पांव एवं शरीर को संभालते हुए चलना विवेक पूर्वक विराधना रहित मागों से जाने का निर्णय करना। . (5) अनार्य प्रकृति के लोगों की बस्ति वाले क्षेत्रों या मार्गों में विहार नहीं करना। (6) जन रहित अत्यधिक लंबे मार्गों में विहार नहीं करना / (7) परिस्थिति उपस्थिति होने पर सूत्रोक्त विवेक और विधियों के साथ नौका विहार करना कल्पता है। (8) नदी में फेंक देने पर यतना पूर्वक तैर कर उसे पार करना कल्पता है। (6) शरीर के जल की स्निग्धता से रहित होने तक नदी के किनारे खड़े रहना / फिर विराधना रहित या अपेक्षाकृत अल्प अल्पतर विराधना वाले मार्ग का अन्वेषण कर विहार करना। (10) विहार करते वक्त किसी के साथ वार्तालाप करते हुए नहीं चलना। (11) घुटने के नीचे तक पानी हो ऐसे नदी नाले मार्ग में आ जाय और अन्य मार्ग प्रास-पास में न देखें तो पानी का मंथन न हो इस तरह तथा अन्य सूत्रोक्त विवेक रखकर उसे चलकर पार करना कल्पता है। (12) अत्यधिक विषम या असमाधिकारक मार्गों से नहीं चलना। (13) ग्रामादि की शुभाशुभता के परिचय सम्बन्धी राहगीरों के प्रश्न का उत्तर नहीं देना और न ही ऐसे प्रश्न पछना। (14) चलते समय मार्ग में अनेक स्थानों, जलाशयों और जीवों को, पाशक्ति युक्त देखना नहीं एवं दिखाना भी नहीं।