Book Title: Acharang Sutra Saransh
Author(s): Agam Navneet Prakashan Samiti
Publisher: Agam Navneet Prakashan Samiti

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Page 32
________________ दूसरे अध्ययन का सारांश: इस अध्ययन में उपाश्रय सम्बन्धी वर्णन है। (1) हरी घास, बीज, अग्नि एवं जल तथा त्रस जीव कीड़ी मकड़ी आदि से युक्त स्थान में नहीं ठहरना / (2) जैन साधुओं के उद्देश्य या गणना युक्त उद्देश्य वाले स्थान में नहीं ठहरना। . (3) कीत दोष एवं छोटे बड़े परिकर्म (सुधार-संस्कार) कार्य साधु के लिए किए हों उस स्थान में नहीं ठहरना। पुरुषांतर कृत हो जाने पर ( गृहस्थ के उपयोग में आ जाने पर) ये कीत परिकर्म युक्त सभी उपाश्रय कल्पनीय कहे गये हैं। (4) भूमि से अधिक ऊंचे एवं चौतरफ खुले आकाश वाले (अंतरिक्षजात) स्थानों में नहीं ठहरना / (5) परिवार युक्त गृहस्थ के मकान में या धन सम्पत्ति युक्त स्थानों में नहीं ठहरना। (6) गृहस्थ के रहने के स्थान की और साधु के ठहरने के स्थान की छत एवं भित्ति दोनों संलग्न हो उसे द्रव्य प्रतिबद्ध उपाश्रय कहते हैं और जहां स्त्री और साधु के बैठने व पैसाब करने का स्थान एक हो जहां से सहज स्त्री के रुप दिखते हों, शब्द सुनाई देते हों, वह भाव प्रतिबद्ध उपाश्रय है ऐसे प्रतिबद्ध उपाश्रय में नहीं ठहरना। (7) भिक्षु अस्नान धर्म का पालन करने वाला होता है एवं समय समय पर कई कार्यों में लघुनीत (मूत्र) का उपयोग करने वाला होता है अतः भिक्षु के शरीर की गंध या दुर्गन्ध प्रादि भी गृहस्थों को प्रतिकूल एवं अमनोज्ञ हो सकती है / अतः परिवार युक्त गृहस्थ के घर में ठहरने की जिनाज्ञा नहीं है। .

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