Book Title: Acharang Sutra Saransh
Author(s): Agam Navneet Prakashan Samiti
Publisher: Agam Navneet Prakashan Samiti

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Page 14
________________ (2) कामभोग जीव को भारी कर्मा बनाकर संसार के जन्म मरण में रखते हैं और मुक्ति से दूर करते हैं / वे प्राणी मोह से मूढ बन जाते हैं। (3) चतुर कुशल पुरूष (साधक) विषय भोग का सेवन नहीं करते। (4) रूपों में प्राशक्त बने कई जीव बारम्बार कष्ट पाते हैं। (5) कई जीव प्रारंभ समारंभ में रमण करते हैं उसे ही शरण भूत समझते हैं। किन्तु वास्तव में वह प्राशरण भूत ही है। (6) कई साधक स्वयं के कषायों एवं दुष्प्रवृति के कारण एकल विहारी होकर कपट प्रादि अवगुणों से मूढ बनकर धर्म से च्युत हो जाते हैं। द्वितीय उद्देशकः-- (1) कई साधक मनुष्य भव को अमूल्य अवसर जानकर प्रारम्भ के त्यागी बनते है और सर्व शक्ति से संयम तप में तल्लीन बन जाते हैं। (2) सर्वनों का यही उपदेश है कि उठो! प्रमाद न करो। जीवों के सुख दुःख को देखों और अहिंसक बनकर स्वयं की प्रापत्ति को धैर्य से पार करो। (3) साधक यह सोचे कि पहले या पीछे कभी भी बंधे हुए कर्मों का कर्ज तो चुकाना ही होगा और शरीर भी तो एक दिन छोड़ना ही होगा। (4) ऐसे प्रात्मार्थो चिन्तन शील ज्ञानी के लिए संसार मार्ग नहीं रहता है। (5) परिग्रह महा भयदायक है, कर्म का बंध कराने वाला हैं, यह जानकर साधक सदा अपने भावों को परिग्रह एवं प्रारम्भ से मुक्त रखे।

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