Book Title: Acharang Sutra Saransh
Author(s): Agam Navneet Prakashan Samiti
Publisher: Agam Navneet Prakashan Samiti

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Page 28
________________ उस पाहार ग्रहण के प्रयोजन से विहार करके भी नहीं जावें। (2) उपाश्रय से अन्यत्र कहीं जाना हो तो सर्व उपकरण युक्त जाना। (3) राजा एवं उसके स्वजन परिजन का प्राहार नहीं लेना। चौथा उद्देशक: (1) विशिष्ट भोजन वाले गृह में लोगों का आवागमन अधिक हो रहा हो उस समय भिक्षार्थ नहीं जाना / शान्ति के समय विवेक पूर्वक जाना कल्पता है। , . (2) दूध दुहा जा रहा हो या प्राहार निष्पन्न हो रहा हो तो ऐसा जानकर भिक्षार्थ प्रवेश नहीं करना और प्रावश्यक व्यक्ति को दिये जाने के बाद लेना। (3) प्रागंतुक पाहुणे साधुओं के साथ भिक्षा के सम्बन्ध में मायापूर्ण व्यवहार नहीं करना किन्तु प्राशक्ति भाव दूर कर उदार वृत्ति से व्यवहार करना। . पांचवा उद्देशक: (1) किसी प्राहार की शीघ्र प्राप्ति हेतु उतावल से नहीं जाना एवं होशियारी करके भी नहीं जाना। . (2) आपत्तिकारक बाधाजनक मार्गों से भिक्षार्थ न जाना / (3) अपरिचित प्रभावित घरों का छोटा या बडा दरवाजा या बंद मार्ग बिना प्राज्ञा नहीं खोलना। (4) अनेक भिक्षाचरों या असंभोगिक साधुनो के लिए दाता ने सामुहिक आहार दिया हो तो समविभाग कर अपना विभाग ही लेना तथा सार्मिकों के साथ खाना हो तो भी अपने विभाग से अधिक खाने का प्रयत्न नहीं करना। (5) घर के बाहर कोई भिक्षाचर खड़े हों तो उस घर में

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