Book Title: Acharang Sutra Saransh
Author(s): Agam Navneet Prakashan Samiti
Publisher: Agam Navneet Prakashan Samiti

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Page 27
________________ (3) कच्चे धान्य आदि के सिट्टे, कंबियां आदि अग्नि पर सामान्य सिके हुए हों तो अग्राह्य है, परिपूर्ण सिके हो तो ग्राह्य है / (4) अन्य भिक्षाचार या पारिहारिक साधु के साथ-साथ आवागमन नहीं करना। (5) साधु-साध्वी के उद्देश्य से बनाया, खरीदा, उधार लिया, किसी से छीना हुअा, सामने लाया हुअा आहार प्रकल्पनीय है। (6) सामान्य रूप से शाक्यादि सभी श्रमणों के लिए गिनगिन कर बनाया पाहार भी भिक्ष को अग्राह्य है। (7) किसी को भी गिने बिना सामान्य रूप से भिक्षाचरों के लिए बना आहार पुरूषांतरकृत होने पर (उद्देश्य किए भिक्षाचरों या गृहजनों द्वारा ग्रहण और उपभोग किए जाने पर) लेना कल्पता है। (8) जहां जितना पाहार केवल दान के लिए ही निर्धारित कर बनाया जाता हो ऐसे दान कुलों में उस पाहार को नहीं लेना। दुसरा उद्देशकः-- (1) महोत्सवों में जीमनवार के समय आहार ग्रहण नहीं करना / वही पाहार पुरूषांतर कृत होने पर कल्पता है। दो कोष के आगे के जीमनवार में भिक्षार्थ नहीं जाना / वहां जाने पर अनेक दोषों की सम्भावना रहती है। (2) क्षत्रिय, वणिक, ग्वाल जुलाहा, प्रारक्षक, नाई, सुनार, लुहार, दो, बढ़ई आदि घरों से एवं अन्य भी ऐसे लोक व्यवहार में जो भी अजुगुप्सित अनिन्दित कुल हो वहां से प्राहार लेना कल्पता है। तीसरा उद्देशकः (1) जीमनवार (बहुत बडे भोज) वाले ग्रामादि के लिए

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