Book Title: Acharang Sutra Saransh
Author(s): Agam Navneet Prakashan Samiti
Publisher: Agam Navneet Prakashan Samiti

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Page 25
________________ (4) देव आदि के अनुकल प्रतिकल भयानक कष्टों में भी हर्ष-शोक का त्याग कर उन्हें सहन करते / तीसरा उद्देशक: (1) प्रभू महावीर कुछ समय के लिए अनार्य देश में गए / वहां लोगों का प्राहार व्यवहार अत्यन्त रूक्ष था। (2) वहां कुत्तों का कष्ट भी अत्यधिक रहा था। वहां के लोग प्रेरणा ( छू-छ ) करके कुत्तों से भगवान को कटवाते थे / किन्तु भगवान् ने उनसे बचने की भी कभी कोशिश नहीं की। (3) कई लोग गालियां देते, चिढ़ाते, पत्थर मारते, धूल फेंकते. पीछे से धक्का देकर गिरा देते या उठाकर पटक देते। (4) कोई दण्ड मुष्ठी भाले आदि से प्रहार करते। कोई गांव में प्रवेश करने के पूर्व ही निकाल देते कि- "हमारे गांव में मत प्रायो।" __ऐसे भयानक कष्ट वहां प्रभु ने सहन किए। चौथा उद्देशकः-- (1) प्रभू महावीर निरोग होते हुए भी सदा अल्प प्राहार करते और रोग प्राने पर भी कभी औषध चिकित्सा नहीं करते। (2) कभी भी शरीर परिकर्म नहीं करते / सर्दी गर्मी की आतापना लेते एवं उपवास से लेकर 6 मास तक की अनेक तपस्या करते ही रहते थे। (3) संयम में, गवेषणा में कभी कोई भी दोष नहीं लगाते। मार्ग में अन्य आहारार्थी पशु-पक्षी या मनुष्य होते तो भगवान् भिक्षार्थ नहीं जाते अथवा उनको अन्तराय न हो विवेक से जाते / (4) एक बार पाठ मास तक निरंतर भात, बोर-कटा और उड़द इन तीन वस्तु के सिवाय कोई पाहार प्रभू ने नहीं लिया /

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