________________ (2) पाहार सम्भोग के त्याग करने की विभिन्न प्रतिज्ञा धारण करें। (3) अन्त में यथा विधि पादपोपमन पण्डित मरण स्वीकार करें। आठवा उद्देशकः-- (1) भक्त प्रत्याख्यानः -- कषाय पतले करे आहार घटावे फिर अाहार त्याग करे। जीवन मरण की चाहना न करें, निर्जरा प्रेक्षी होकर शुद्ध अध्यवसाय रखें। आयु समाप्ति निकट जान आत्मा को शिक्षित करें। योग्य निर्जीव भूमि में विधिपूर्वक संथारा करें। कष्ट परीषह में धैर्य रखें। छोटे-बड़े जीवों के द्वारा उत्पन्न उपद्रव में सहनशीलता के साथ शुद्ध परिणाम रखें। . (2) इंगित मरण:-अन्य किसी के द्वारा कोई भी सहकारपरिकर्म स्वीकार न करें किन्तु आवश्यक होने पर स्वयं शरीर को परिचर्या (दबाना आदि) कर सकता है / ____ मर्यादित भूमि में उठना, बैठना, चलना, सोना आदि प्रवृत्ति भी अत्यन्त आवश्यक होने पर कर सकता है। (3) पादपोपगमनः-वृक्ष की टूट कर गिरी हुई शाखा के समान स्थिरकाय होकर एक स्थान पर ही रहे। परीषह उपसर्ग दृढ़ता के साथ सहन करें। शरीर पर ही कोई चले या शरीर को कुचल दे तो भी धैर्य से सहन करे किन्तु वहां से न हटे / मल-मूत्र त्यागने हेतु उठ सकता है। - जीवन पर्यन्त इस तरह सहन करे / सहनशीलता को ही परम धर्म समझे।