________________ 22 नवमें अध्ययन का सारांश:प्रथम उद्देशकः (1) श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने हेमंत ऋतु में संयम स्वीकार किया। . (2) वे सम्पूर्ण संयम विधियों का यथावत पालन करने अर्थात् 5 महावत 5 समिति में किसी प्रकार की स्खलना या प्रमाद का आचरण नहीं करते। . (3) वे सर्दी से घबराते नहीं और कभी कमरे से बाहर प्राकर शीत सहन करते। (4) प्रभू ने एक वर्ष और एक मास बीत जाने पर इन्द्र . प्रदत्त वस्त्र का परित्याग कर उसे वोसिरा दिया। (5) संयम लेने के पूर्व भी भगवान ने दो वर्ष तक सचित्त जल त्याग आदि नियमों को धारण किया था। (6) प्रभू महावीर एकाग्र दृष्टि से चलते, इधर-उधर नहीं देखते / खाज भी नहीं खुजलाते। . द्वितीय उद्देशक: (1) प्रभू महावीर ने छमस्थ काल में अनेक प्रकार के स्थानों में निवास किया था / यथा-धर्मशाला, सभास्थल, प्याऊ, दुकान, खण्डहर, तृण-कुटीर ( झोंपड़ी ), बगीचा, विश्रामगृह, ग्राम, नगर, श्मशान, शून्यगृह, वृक्ष के नीचे इत्यादि / (2) कभी भी भगवान् सयन नहीं करते, निद्रा नहीं लेते। प्रमाद की सम्भावना जानते तो चंक्रमण कर निद्रा को हटा देते। (3) जीव जन्तुओं और कोतवाल आदि पारक्षकों के अनेक कष्ट सहन करते।