Book Title: Aavashyaksutram Part 03
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 448
________________ आवश्यकहारिभद्रीया 'पिंडेसा आगया, महासमरसंघाओ जाऔ, पच्छा वारत्तगो चिंतेइ-एएण कारणेण भगवं नेच्छइत्ति, सोहणं अज्झवसाणं उवगओ, जाई संभरिया, संबुद्धो, देवयाए भंडगं उवणीयं, सो वारत्तरिसी विहरंतो सुसुमारपुरं गओ, तत्थ धुंधुमारो |राया, तस्स अंगारवई धूया, साविया, तत्थ परिवायगा उवागया, वाए पराजिया, पदोसमावन्ना से सावत्तए पाडेमित्ति चित्तं फलए लिहिता उजेणीए पज्जोयस्स दंसेइ, पज्जोएण पुच्छियं, कहियं चणाए, पजोओ तस्स दूयं पेसइ, सो धुंधुमारेण असक्कारिओ निच्छूढो, भणइ पिवासाए-विणएणं वरिजइ, दूएण पडियागएण बहुतरगं पज्जोयस्स कहियं, आसुरुत्तो, सबबलेणं निग्गओ, सुसुमारपुरं वेढेइ, धुंधुमारो अंतो अच्छइ, सोय वारत्तगरिसी एगत्थ नागघरे चच्चरमूले ठिएल्लगो, सो राया भीओ एस महाबलवगोत्ति, नेमित्तगं पुच्छइ, सो भणइ-जाह-जाव नेमित्तं गेण्हामि, चेडगरूवाणि रमंति ताणि |भेसावियाणि, तस्स वारत्तगस्स मूलं आगयाणि रोवंताणि, ताणि भणियाणि-मा बीहेहित्ति, सो आगंतूण भणइ-मा प्रतिकमणाध्य० योगसं० १७ संवेगे वारत्रकर्षि ॥७११॥ कथा पिण्डयित्वा मागताः, महासमरसंघातो जातः, पश्चाद्वारत्रकश्चिन्तयति-एतेन कारणेन भगवाजेपीदिति, शोभनमध्यवसानमुपगतः, जातिः स्मृता, संबुद्धः, देवतयोपकरणमुपनीतं, स वारत्रकऋषिविहरन् शिशुमारपुरं गतः, तत्र धुन्धुमारो राजा, तस्याङ्गारवती दुहिता, श्राविका, तत्र परिवाजिका भागता, वादे (तया) पराजिता, तस्याः प्रद्वेषमापन्ना सापळ्ये पातयामीति चित्रं फलके लिखित्वोजयिन्यां प्रद्योताय दर्शयति, प्रद्योतेन पृष्टं, कथितं चानया, प्रद्योतस्तस्मै दूतं प्रेषयति, स धुन्धुमारेणासस्कृतो निष्काशितः, भणितः पिपासया-विनयेन बियते, दूतेन प्रत्यागतेन बहुतर प्रद्योतस्य कथितं, कुन्दः, सर्ववलेन | निर्गतः, शिशुमारपुर वेष्टयति, धुन्धुमारोऽन्तः तिष्ठति, स च वारनकपिरेका चत्वरमूले स्थितोऽस्ति, स राजा भीत एष महाबल इति, नेमित्तिकं पृच्छति, स भणति-यात यावनिमित्तं गृहामि, चेटा रमन्ते ते भापितास्तस्य वारत्रकस्य पार्श्वमागता रुदन्ता, ते भणिता-मा मैटेति, स आगत्य भणति-मा ॥७११॥

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