Book Title: Aage ki Sudhi Lei
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 12
________________ फलरूवरूप गत वर्षों में प्रवचन पाथेय के पुष्प क्रमांक-४,५,६,८,१० और १२ प्रकाशित होकर जनता के हाथों में पहुंचे। इस क्रम में प्रवचन पाथेय ग्रंथमाला का यह तेरहवां पुष्प आगे की सुधि लेइ के नाम से प्रकाश में आ रहा है। इसमें श्रीगंगानगर-यात्रा (सन १९६६) के लगभग तीन माह के प्रवचन संकलित हैं। आगे की सुधि लेइ की मूल सामग्री महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी ने इस दायित्व पर आने से पूर्व संकलित की थी। हालांकि उनका संपादन का जैसा अनुभव है, इस कार्य में उनकी जैसी त्वरित गति है और आचार्यप्रवर का उन्हें जैसा विश्वास प्राप्त है, वह सब देखते हुए इसका संपादन उनके लिए सहज कार्य था, तथापि उन्होंने यह कार्य स्वयं न कर मुझे सौंपा। इसके पीछे उनका क्या दृष्टिकोण रहा है, यह वे ही जानती हैं। मैं तो ऐसा मानता हूं कि यह मेरे संपादन की एक परीक्षा है। मैं नहीं जानता कि मैं इस परीक्षा में उत्तीर्ण घोषित किया जाऊंगा या अनुत्तीर्ण, पर मैं स्वयं अपने-आपको अनुत्तीर्ण नहीं मानता, क्योंकि किसी कार्य को निष्ठा और ईमानदारीपूर्वक करना ही मेरी उत्तीर्णता की कसौटी है। वैसे यह कार्य सौंपकर महाश्रमणीजी ने अपने हृदय की उदारता का परिचय दिया है। इस निमित्त से पूज्य गुरुदेव की इस कृति से जुड़ने का मुझे सहज अवसर प्राप्त हुआ। मैं मानता हूं, गुरु की किसी कृति से जुड़ना किसी शिष्य के लिए अत्यंत सौभाग्य की बात है। महाश्रमणीजी को यह सौभाग्य सहज रूप से प्राप्त है। अपने इस सौभाग्य में उन्होंने मुझे भी सहभागी बनाया, इसके लिए मैं अत्यंत कृतज्ञ हूं।। पूज्य गुरुदेव मेरी अंतहीन आस्था के केंद्र हैं। धर्मचक्र-प्रवर्तक भगवान महावीर तथा तेरापंथ-प्रणेता आचार्य भिक्षु और उनकी सात पीढ़ियों को देखने के सौभाग्य से मैं वंचित रहा हूं, पर पूज्य गुरुदेव को देखता हूं तो पाता हूं कि उन सबके व्यक्तित्व की बहुत-सी विशेषताएं इस एक व्यक्तित्व में सन्निहित हैं। मुझे ऐसे महान गुरु मिले, इससे बढ़कर मेरे जीवन का और क्या सौभाग्य होगा! इस सौभाग्य की प्राप्ति के कारण मुझे उस सौभाग्य की अप्राप्ति का कोई गम नहीं है। जीवन के किसी क्षेत्र में मिलनेवाली सफलता उनके मंगल आशीर्वाद का ही सुप्रसाद है। इस कार्य की संपन्नता भी उनके आशीर्वाद की ही उपलब्धि है। चाहता हूं कि उनके इस आशीर्वाद की छत्रछाया में उनके हर आदेश/निदेश को उपलब्धि में बदलता रहूं। ग्यारह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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