Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 15
________________ निरीक्षण तो जरूर किया है । मनरूपी समुद्र में उछलती कूदती संकल्प-विकल्पात्मक लहरों को तो देखा है । बस, समुद्र की सपाटी पर तैरनेवाले को पानी का प्रमाण, स्वरूप, खारेपन आदि का ज्ञान तो जरूर होगा ही। लेकिन ऊपर तैरनेवाले तैराकी को समुद्र के तल भाग का ज्ञान कभी नहीं होगा। __ वर्तमान में ऐसे बन बैठे तथाकथित गुरु जो “सर्वं क्षणिकं सर्वं शून्यं, सर्वं अनित्यं" का ज्ञान ढोल पीट-पीट कर जगत को दे रहे हैं यह तो सर्वथा मिथ्याज्ञान है । विपरीतज्ञान है । इसकी तो काफी गहराई से छान–बीन करनी ही चाहिए । सर्वं शब्द से वाच्य क्याक्या कितने और किन पदार्थों को लेना? यदि सर्व कहने से जगत् के पदार्थों का अस्तित्व स्वीकारा जाता है कि नहीं? इतनीसी थोडी तो समझ शायद होगी ही? ऐसे पदार्थों को स्वीकारो तो ही 'शून्य' कहा जा सकता है । अच्छा, तो शून्यं शब्द का क्या अर्थ है ? क्या शून्यं शब्द अभावसूचक है ? तो अभाव कैसा? क्या अभाव त्रैकालिक है ? तो जिन पदार्थों को “शून्यं” कहते हैं उनका अस्तित्व है या नहीं? यदि अस्तित्व ही नहीं है तो शून्यं कहने का तात्पर्य क्या है ? और अस्तित्व ही नहीं है, अभावात्मक ही है तो फिर सर्वं कहकर ज्ञानात्मक व्यवहार ही क्यों करना चाहिए ? जब जिनका अस्तित्व ही नहीं है, अभावात्मक ही है तो फिर वे पदार्थ आपके ज्ञान का विषय-ज्ञेय कैसे बने ? बनने संभव ही नहीं है । और फिर जिनका अस्तित्व ही नहीं है, अभावात्मक ही है ऐसे को क्षणिक या अनित्य कहने का व्यवहार ही कैसे हो सकता है ? क्या जिन पदार्थों का अस्तित्व ही नहीं है, अरे ! जो जगत में अभावात्मक ही है उनमेंसे किसी एक का भी नाम दे सकते हो? या किसी एक का भी व्यवहार कर सकते हो? संभव ही नहीं है । अस्तित्वाभाववाले का व्यवहार क्या हो सकता है ? तो फिर निरर्थक है सारी विचारधारा । फिर आगे सर्वं क्षणिकं या अनित्य कहना ही मूर्खता है । ऐसे बन बैठे तथाकथित ज्ञानी गुरु जो प्ररूपणा–प्रतिपादना करते हैं वे स्वयं भी भ्रान्त हैं, संभ्रान्त हैं । भटक रहे हैं । ऐसे के ज्ञान के आधार पर या फिर बताए हुए ध्यान के आधार पर चलना ही अंधे के पीछे कुए में गिरने जैसा है। अरे ! आत्मा की बात तो छोडो, आकाशादि पदार्थों को ये क्या कहेंगे? कैसे कहेंगे? क्यों कि आत्मादि को तो मानते ही नहीं है । अतः सवाल ही खडा नहीं होता है । अब बताइये, आकाश नामक पदार्थ का अस्तित्व है या नहीं? परमाणु आदि पदार्थ है या नहीं? यदि है तो सर्वं शब्दान्तर्गत उनकी गणना होती है या नहीं? और होती है तो उनका अभाव या शून्यता कैसे सिद्ध होगी? और यदि शून्यता सिद्ध ही नहीं होती है तो “सर्वं शून्यं" का सिद्धान्त तो सर्वथा गलत सिद्ध हुआ। फिर वह सर्वं अनित्य कैसे सिद्ध होगा? ९८२ आध्यात्मिक विकास यात्रा

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