Book Title: Ghantakarn Kalp
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori Jain Pustakalay
Catalog link: https://jainqq.org/explore/034826/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ @kkb][ith love Illlebic be દાદાસાહેબ, ભાવનગર, ફોન : ૦૨૭૮-૨૪૨૫૩૨૨ 3004279 Shree Südharmaswami Gya handar-Umara Sul www.umarasvartaiddar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेवक पुष्पाड ३० घंटाकर्ण-कल्प : जिसमें : विविध रंगों के चित्र-यंत्र का संग्रह है और विधि-विधान सहित वर्णन किया गया है। प्रकाशक: चंदनमल नागोरी जैन पुस्तकालय पोस्ट-छोटी सादडी (मेवाड़) संपादक: चंदनमल नागोरी-छोटी सादडी [मेवाड] __ -(कीमत पांच रूपया) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्वाधिकार लेखक ने स्वाधीन रखे हैं। प्राप्त वचन यथैषा विधिना लोके, न विद्यः गृहणाति यत् ॥ विपर्यय फलत्वेन, तथेदमपि भव्यताम् ॥१॥ भावार्थ-अविधि से ग्रहण की हुई विद्या मन्त्र-यत्र-तन्त्र यादि कुछ भी हो, विधान रहित ग्रहण की है तो वह विपरीत फल देगी श्रतः विधि-विधान को मान देना चाहिये । मद्रक: ईश्वरलाल जैन स्नातक आनन्द प्रिंटिंग प्रेस गोपालजी का रास्ता जयपुर । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CCC श्री घंटाकर्ण देव CCCCCCCCCCCCCCCCCCC 54: ᎧᎧᎧᎧᎧᎧ Ꭷ ᎧᎧ Ꭷ Ꭷ ᎧᎧ Ꭷ Ꭷ ᎧᎧᎧᎧᎧ CO Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बंटाकर्ण देव कागपता * मल मंत्र * ऊँ हाँ ह्रीं श्रीं क्ली ब्लु द्रों द्री आँ को ह्रीं घंटाकर्ण भद्र. मानीभद्र ठः ठः ठः म्वाहा ॥ . . ST . - :--- द्रमरा मंत्र ॐ आँ क्राँ ह्रीं क्लीं उन । श्री घंटाकर्ण महावीर भद्रमागिा. भद्रे ॐ ह्रीं घंटाकर्ण नमोस्तुते टः ठः ठः स्वाहाः ॥ - - - 7 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ____ ** विज्ञप्ति * घंटाकर्ण-कल्प प्रकाशित कराने का विचार कई वर्षों से हो रहा था, और लगभग पन्द्रह वर्ष पहले हस्त पत्र भी छपवाये थे, और दरम्यान में दो-तीन बार जाहेरात भी छपवाई थी परन्तु कई तरह की कठिनाइयों के कारण प्रसिद्ध नहीं करा सके । घंटाकर्ण का यह वर्णन पुरानी प्रत से लिखा गया है, जिसमें संवत् का उल्लेख नहीं है और दूसरी प्रत जो संवत् १६०८ की लिखी हुई है उससे मिलान किया गया है, और मन्त्र महिमा प्रकरण में जो वर्णन है उसमें कुछ भाग श्रीमान् योग-निष्ठ जैनाचार्य श्री बुद्धिसागर सूरीश्वरजी महाराज साहेब के लेखों पर से लिया गया है चित्र आदि भी पुरानी प्रतों पर से तैयार कराये हैं, इस तरह से संकलना कर पुस्तक प्रकाशित की गई जिसका श्रेय उन्हीं प्राप्त पुरुषों को है कि जिनकी कृतियों पर से यह संकलना की गई है, फिर भी त्रुटियां रह जाना सम्भव है अतः पाठकों की दृष्टि में आवे तो सुधार लेवें । इस पुस्तक के प्रकाशन में पूज्यपाद मुनि महाराज श्री जिनभद्रविजयजी साहब ने प्रोत्साहित किया है जिनका विशेष आभार मानता हूं। निवेदक२००८ आसाढ़ सुदि १५ . . चन्दनमल नागोरी जयपुर (राजस्थान) छोटी सादडी (मेवाड़) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ = समर्पण-पत्र स्वर्गवासी जैनाचार्य भट्टारक श्री जिनऋद्धि सूरीश्वरजी महाराज जैन जनता श्रीमोहनलालजी महाराज के नाम से विशेष परिचित है, चरित्र नायक भट्टारक जी महाराज उक्त मुनिराज के हस्तदीक्षित प्रशिष्य हैं, आपके उपदेश से समाज के हित के बहुत से कार्य हुए हैं उनमें से एक तो श्री मुनिसुव्रत स्वामी का नवपद मंडल सहित मंदिर और दूसरा बम्बई में पायधुनी पर श्रीमहावीर भगवान के मंदिर में श्रीघंटाकर्ण देव की मूर्ति की स्थापना । वैसे तो आपके कराये हुए कामों की नामावली विशेष है परन्तु हमें तो यहां श्रीघंटाकर्ण देव की स्थापना से सम्बन्ध है, आप पर घंटाकर्ण देव प्रसन्न थे एक दो बार तो प्रतिष्ठा के समय प्रत्यक्ष चमत्कार दिखाया था जिसका दृष्य उस समय की उपस्थित जनता ने देखा था, कठिन कार्य की सिद्धि के हेतु घंटाकर्ण देव को आप प्रथम आगेवान मानते थे और तत् Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैनाचार्य श्री भट्टारक जिनऋद्धि सूरीश्वरजी महाराज जिनके करकमलों से एक प्राचार्य एक उपाध्याय पद प्रदान हुआ है। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ श्री घंटाकर्ण देव भादौर बम्बई महावीर स्वामी के मंदिर में स्थापित प्रतिमा का फोटो । Shree Sudharmaswami 96 S 96 ३० 96 90 90 Sp 90 Jo 20 So 90 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ No33............**.*.ee........OCEN 'poo....86Mp226500? घंटाकर्ण स्तोत्र pe.......eso ★★★ ऊँ घंटाकर्ण महावीर; सर्व व्याधि विनाशकः ॥ विस्फोटक भयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महावल ॥ १ ॥ ॐ यत्र त्वं तिष्टसे देव लिखितोऽन्नर पंक्रिभिः ॥ रोगास्तत्र प्रणश्यति वात पित्त कफोद्भवा ॥ २ ॥ तत्र राजभयं नास्ति, यांति करणे जपानयं ॥ शाकिनी भूत वैताला, राक्षसा प्रभवन्ति न ॥ ३ ॥ नाकाले मरणं तस्य न च सर्पेण दस्यते ॥ ७ अग्निचोरभयं नास्ति, ह्रीं घंटाकर्ण नमोस्तुतेो । 9 3:2:2: : || 660000000, CRCCBONJONO6.2266806OUN Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ स ] सम्बन्धी आराधना आदि का विधान भी इच्छुक जन को बता देते थे, वैसे आप यति समुदाय में दीक्षा मान पाये हुए थे और उस समय की समुदाय में भी आपने खूब मान पाया था-यति समुदाय में यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र जैसे विषय की जानकारी स्वाभाविक ही अधिक होती थी, और इस कारण से जनता भी अधिक आकर्षित हो जाती थी, आपके प्रति भी जनता का विशेष बहुमान था, आपके ऐसे संस्कार दृढ जम रहे थे कि यति समुदाय में परिग्रह की मात्रा विशेष रूप में रहने लगी है, कि जिसके कारण पांचवें परिग्रहव्रत का पालन बराबर नहीं होता, आपकी वैराग्य भावना दृढ होती जाती थी जिसके कारण आपको यह बात अखरती थी कि पंच महाव्रत के पालने में त्रुटियां क्यों आती हैं ? आत्महित के लिये लिये हुए महाव्रत सम्पूर्ण न पाले जांय और किसी न किसी बहाने से अपवाद की ओट में स्वार्थ सिद्ध किया जाय तो गुरुचरणों में जिन भगवंत की साक्षी से ली हुई प्रतिज्ञा का भंग होता है वैसे आप जैन शास्त्रों के अभ्यासी तो थे ही, सिद्धांत को भी समझते थे, यति दीक्षा के बाद बहुत कुछ अनुभव भी लिये हुए थे, सोचते-सोचते दृष्टि उस तरफ गई कि जहां जैन समाज में एक सूर्य चमक रहा था, और जिसकी कीर्तिप्रभा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग 1 जैन समाज में विशेष फैल रही थी, मूरत की जैन समाज पर जिनकी असीम कृपा थी और सम्बई से प्रथम पदार्पण के कारण जैन जगत में जिनका नाम सुवर्णाक्षर से लिखा गया है, हां ! उम समय में ऐसी कोई दुकान या मकान बम्बई की जैन समाज में नहीं था कि जहां पर इस महान तपस्वी शासन रक्षक महात्मा का चित्र न हो, जिनका दुबला शरीर ओर लटकती त्वचा जिनके हाड धनाजी की तरह खडखडाती हुई पांसलियां दुर्बलता का दृष्य बता रही थी ऐसे महात्मा श्री मोहनलालजी महाराज की तरफ जिनकी दृष्टि गई__ धन्य गुरुदेव ! आपने जैन शासन की उन्नति में कमी नहीं की, जिसके सिर पर आपके हाथ से वासक्षेप गिर गया उसको आनंद मंगल हो ही जाता था, ऐसे प्रतापी गुरु देव के चरणों में आप भी झुक गये, सोने में सुगन्ध जैसा मिलान हो तो ओर क्या चाहिए ? गुरु महाराज ने स्वहस्त से दीक्षित कर श्रीमान् यश मुनिजी महाराज (आचार्य) के शिष्य बनाये । आप नूतन दीक्षा से विशेष आनंद पाये और उत्तरोतर चढ़ती कला से आप आगे बढते रहे, समाज ने चमकता सितारा देख पन्यास पद और अंत में प्राचार्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परम पूज्य मुनि महाराज श्री मोहनलालजी - टट: Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [घ] पद से आपको पदस्थ किये, शासन का भार लिया हितवत्सलता बढी और जीवन ज्योत जगती रही और समाज के धार्मिक कार्यों में आपने पूरा लक्ष्य दिया और दादागुरु के नाम पर चलती ज्ञान संस्था के लिए स्थाई द्रव्य कोप बढाने में उपदेश देकर लाभ पहुँचाया प्रतिष्ठाएँ और नूतन जिन मंदिर निर्माण कराने में ज्ञानशाला स्थापत कराने में भी आपका पूरा लक्ष्य था, वैसे आप भोले स्वभाव के थे, इस तरह की गुणमाला से सुशोभित गुरुदेव श्रीघंटाकर्ण देव के प्रति बहुमान रखते थे, और जैन संसार का हित होने के हेतु ही आपने श्री घंटाकर्ण की मूर्ति की स्थापना कराई इसी कारण से इस घंटाकर्ण कल्प नाम की पुस्तक की अर्पण पत्रिका स्वीकार करने के अधिकारी भी आप ही खेद इस बात का है कि इस पुस्तक के प्रकाशन को आप दृष्टि से नहीं देख सके और समय से पहले ही स्वर्ग सिधाये | क्या ही अच्छा होता कि यह प्रकाशन आपके कर कमलों में पहुंचता और सम्पादक की भावना और परिश्रम को सफल बनाता - फिर भी इस सफलता को स्वर्ग में ही स्वीकार कर अनुगृहीत करियेगा | आशीषाभिलाषी चन्दनमल नागोरी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका १५ ० नाम पृष्ट नं० | नं० नाम पृष्ट नं० १ घंटाकर्ण देव का स्वरूर १ | १८ पुरुप भय हर २ मत्र महिमा की ब्याख्या ५ १६ लक्ष्मी प्राप्ति ३ स्थान विचार २० लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र २६ ४ योग विचार २१ लक्ष्मीप्राप्त्यर्थ यंत्र २ २७ ५ तिथि विचार | २. वशीकरण ६ जल शुद्धि और स्नान १५ २३ शत्र उच्चाटनार्थ २६ ७ वस्त्र शुद्धि २४ पुत्र प्राप्त्यर्थ = आसन विचार २५ दुर्बुद्धि नाशनाय ३० ६ भूमि शुद्धि १७ २६ कूख छडावना) ३० १० सामग्री विचार २७ मृतवच्छा उपाय ३१ ११ स्थापना विचार २८ सर्व प्रयोगार्थ विधान २३ १२ बैठक विचार २६ एकसोबत्तीस कोष्ठकयंत्र३३ १३ माला विचार ३० चोकोर यंत्र रचना ३३ १४ विशेषतः ३१ अष्टदल कमल यंत्र ३४ १५ उत्तर क्रिया । ३२ राज भय हरण १६ हवन क्रिया का स्थान २३ | ३३ विविध भय हर ३६ १७ दुष्ट देव भय हर २४ | ३४ यंत्र-मंत्र वर्णन ३८ १६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटाकर्ण-कल्प घंटाकर्ण देव का स्वरूप घंटाकर्ण देव का स्वरूप वीरता के लक्षण वाला है और मुखाकृति देखते उग्र स्वभावी जान पड़ते हैं । असल स्वरूप में घंटा कर्णदेव के पांव का मोड़ भुजदण्ड का घुमाव भृकुटि व नेत्र में तेजस्विता और शरीर का आकार देखते संपूर्ण वीरता दिखती है । वीर पुरुषों के लक्षण की व्याख्या करते ग्रन्थकारों ने दाहिना अंग मुख्य माना है और बल-स्फुर्ति-वीरता के कार्य दाहिने हाथ से किये जाते हैं, इसीलिए बायें हाथ में धनुष रहता है और दाहिने हाथ से बाण ( तीर ) चलाते हैं, और यू देखें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटागा-कालप तो पुरूप का दाहिना अंग प्रधान माना गगा है, इसीलिए पूजा प्रथम दाहिने अंग की दाहिने हाथ से की जाती है। लेखन, दान, मान, सन्मान, भेट समर्पण, प्रणाम आदि करने में दाहिने अंग की मुख्यता है और प्रकृति जन्य चेष्टाओं में भी दाहिना अंग विशा कार्य करता है, इसी कारण वीरता के कार्य में भी दाहिना हाथ मक्रिय कार्य करता है, इसीलिए घंटाकर्ण देव की मूर्ति में भी वायें हाथ में धनुप और दाहिने हाथ में चाग रहता है और दाहिनी भुजा के बल से धनुष्य डोरी की वाण महित जितनी विशेष खेंची जाय उतनी ही वह अधिक काम करती है । घंटाकर्ण देव के जो चित्र देखने में आये हैं उनमें भी दाहिने हाथ में वागा देखा गया है और चित्रकारों की तस्वीरों में पेट पर भुजाओं पर और घुटनों पर मंत्र लिखे हुए मिलते हैं । शरीर विभाग में इस तरह की योजना मरे यक्ष यनगियों के चित्रांग पर देखने में नहीं आई । हां ! यन्त्र सिद्ध करने के लिये देव चित्र के चरण में यत्र रख कर क्रिया करने का विधान है, जिसकी जगह आलम्बनीय चित्र में इस तरह की योजना लिखित कर देना यह बात समझ में नहीं माती । यन्त्र सहित चित्र को पास में रखने के हेतु या Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घटाकगा काप - - - - - - अन्य किसी आवश्यक कार्य पूर्ति के हेतु इस प्रकार को योजना की हो तो इस विषय के निणात महानुभावों को पूछ लेना चाहिये और पालम्बन में रखने के लिए तो जैसा शुद्ध स्वरूप बताया है वैमा ही रखना उचिा है. जिसका स्वस्य मूर्ति निर्माण शिल्प के अनुसार हो । कर परिवर्तन देव को प्रिय नहीं होता, साधारण मनुष्य को भी शरीर का शाभा-स्वरूप प्रिय होता हैं छोट से पड़ सब को निज स्वरूप व्यवस्थित होतो प्रियकारी होता है, इसी तरह देव को निज का स्वरूप परिवर्तन प्रियकारी नहीं होता, शास्त्रों में चोवीस जिन भगवंत के यक्ष यक्षणियों का स्वरूप और पोडश देवियों के स्वरूप का वर्णन विस्तार से प्रतिपादित है, तदनुसार मूर्तियां व चित्र' बनवाये जाते हैं, जैन धर्मानुयायियों ने साथ-धायक के स्वरूप का कथन भी किया है तदनुसार वेप धारण किया हुआ हो तो पहिचान शीघ्र हो जाती है, मनस्वी धारणा से देव के स्वरूप का परिवर्तन नहीं करना चाहिये और प्राचीन क्रिया के अनुसार ही चित्र लेखन करना उचित है। वीर पुरुष तलवार-खांडा आदि कमर पर बांयी ओर बांधते हैं,-बांयी ओर बांधने से दाहिने हाथ से निकाल सकते हैं और म्यान कमर पर लटकती रहती है, ढाल वायी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धंटाकर्ण कल्प ओर के खवे पर रहती है, इस तरह के विधान को मममे बिना चित्र बनवाये जाय तो जो लोग चित्रकारों में निष्णात हैं वह ऐसी चित्र कला की सराहना नहीं करते, वीर पुरुष के वेष को और जो शम्त्र शोभा के लिए अंग पर चित्रित किये जाते हैं उनको व्यवस्थित-विधान के अनुमार बताना चाहिए, अविधि से बने हुए चित्र आलम्बन में रखने से कार्य की सिद्धि नहीं होती अतः आराधन करने वाले को इस ओर लच्य देना चाहिए । घंटाकर्ण शब्द का साधारण अर्थ तो यही है कि जिसके सिर हिलाने से कान के पास में घंटा बजता हा, , और विधान में भी घंटा को विशेष महत्व दिया है, ऐसा मी वर्णन किया गया है कि ढोगें में जब रोग फैल जाता है तो मन्वाक्षर लिख घंटा मन्त्रित कर एक पशु के गले में बांधने से उसके चलने से जो आवाज निकलेगी जिम पशु को सुनने में आवेगी वह गेग मुक्त हो जायगा, यह विधान घंटाकर्ण शब्दार्थ से सम्बन्ध रखता है । अस्तु __घंटाकर्ण देव समकिती हो या न हो हमें इससे प्रयोजन नहीं है, परन्तु इतना तो अवश्य जान लेना चाहिए कि जिन ऊँ ह्रीं में पंच परमेष्टि और चौबीस जिनकी स्थापना है, उनका अनादर घंटाकर्म देव कभी नहीं करता । जिन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटाकगण कल्प [ " 1 लोगों ने चित्र बनवाने में घंटाकर्णी देव के चरणों में इन बीजाक्षरों को लिखवाया है अनुचित किया है। इस तरह से मन्त्राक्षरों का अनादर करना उचित नहीं था, न इस तरह से लिखने का कोई प्रमाण बताया गया । घंटाकर्ण का शब्दाथघंटा जिसमें से आवाज निकलती हैं और कर्ण कान को कहते हैं देव तव सिर हिलाता है तब कान के पास घंटा बजता है, उसी का नाम बंटाकर्ण है। नाम संस्कार के अनुसार दो कान हैं तो दो ही घंटा का होना उचित माना गया है, इस देव का सेवक सर्प के रूप में रहता है, और सर्प के रूप से ही परीक्षा लेता है, अतः घंटाकर्ण के चरण के पास सर्प का चिन्ह अवश्य होना चाहिए। सर्प का चिन्ह भी मुँह फाडे नहीं होना चाहिए चलता हुवा मुँह को स्नित - हास्य जैसा फण फैलाये हुए हो वैसा चित्र बनवाना उचित हैं । अस्तु । J 4 मंत्र महिमा की व्याख्या मन्त्र प्रवाद पूर्व में से अनेक मन्त्र पूर्वाचार्यों ने उद्धृत किये हैं, और उनकी सिद्धि प्राप्ति के हेतु कल्प बना कर मन्त्र आराधन में विधि विधान जानने के लिये विशेष सुविधा करदी है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटाकर्ण-कल्प जैन समाज में भक्तामर स्तोत्र की रचना कर विशेषता बताई और प्रत्येक श्लोक का एक एक मन्त्र बना कर जन हित के हेतु कल्प बना कर कार्य सिद्धि का एक मुख्य अंग बना दिया, इसी तरह से इस समय जिन जिन मन्त्र स्तोत्र के कल्प देखने में आये हैं उनका संक्षिप्त वर्णन करना प्रसंगोचित है। १. प्रथम नवकर महामंत्र के चार कल्प बने हुए हैं, जिसमें से बृहद् कल्प हमारी ओर से संपादित हो प्रकाश में आया है जिसकी चार आवृत्ति छप चुकी हैं। उवसग्गहर कल्प, विशेष प्रभावशाली है जिसमें कई तरह के यन्त्र भी हैं और यह स्तोत्र पांच गाथा, तेरह गाथा, इक्कीस गाथा का देखने में आया है जिसका पाराधन कर अनुभव किया गया तो विशेष चमत्कारी सिद्ध हुवा। ३. लघु शांति कला इसमें भी विशेष महत्वता बताई है। ४. बृहद् शांति मंत्र कन्प यह गृहस्थोपयोगी मंगलमय कल्प है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटाकरण- कल्प [ ७ ५. संतिकर मंत्र कल्प रोग पीड़ा निवारण में सहायता पहुंचाता है । ६. विजय पहुत मन्त्र कल्प, इसके यन्त्र भी हैं और यह जैन समाज में विशेष प्रसिद्ध है । ७. नमिउण मन्त्र कल्प, नवस्मरण में इसका उल्लेख है । ८. ऋषि मण्डल स्तोत्र - कल्प इसकी अपूर्वता का वर्णन तो विशेष है, अनुभव में आया है कि इसका मूल मन्त्र और साधन सिद्धि के लिए इसका विधान स्वीकार किया जाय अति नहीं अत्यन्त लाभदाई होगा यह पुस्तक भी मेरे सम्पादन में प्रकाशित हो चुकी है। ६. भैरव पद्मावती कल्प यह भी विशेष प्रभावशाली है और विधि-विधान से सिद्ध किया जाय तो लाभदाई है । इस तरह से और कल्प बहुत से हैं, औषधियों के भी मन्त्र व कल्प देखने में आये हैं, और मन्त्र महिमा में सूरि मन्त्र का आराधन आचार्य महाराज करते हैं और वर्द्धमान विधान के मूल मन्त्र की आराधना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटाकगा कर उपाध्यायजी महाराज करते हैं जिमका पट भी बना हुआ है और मन्त्र यन्त्र भी है। यहां पर इतनी भूमिका बताकर घंटाकर्ण कल्प की बात कहना है । घंटाकर्ण कल्प पूर्वाचार्यो--ग्राप्त पुरुषों का बनाया हुग है और इस देव की आराधना करने में कार्य की मिद्धि होती है. इसी लिए 'प्रतिष्ठा कल्प में इस देव का स्मरण कर मुखडी भेट करना आवश्यकीय बताया और एक थाल में मन्त्र यन्त्र लिख कर उसमें मुखडी रख भंट करते हैं। प्रतिष्ठा के विधान में तो यह म्मरण पावश्यकीय बताया है। मन्त्राधिष्ठित देव होते हैं, और विद्याप्रवादपूर्वक मन्त्र प्रवाद पूर्व में से मन्त्र उद्धृत कर पर्वाचार्यों ने देवों को भी ममकिती बनाया है, उदाहरण है कि तीर्थाधिराज शत्रंजय का अधिष्ठायक देव कपदीयक्ष मिथ्यान्वी हो गया था, जिमसे वज्रम्वामी ने उसकी स्थापना हटा कर मरे कपदीयक्ष को बुला कर ममकिती बनाया और उसकी स्थापना की जिसका वर्णन शत्रुजय उद्धार में श्रीधनेश्वरसूरि महागज ने किया है, और आनंद विमलसूरि महागज ने श्रीमणिभद्र वीर की स्थापना पालनपुर के पास मगरवाडा ग्राम में की जो अद्यापि विद्यमान है। दूसरी स्थापना विजा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंटाकग कप [६ 'पुर के पास पागलोड गांव में है, जहां पर श्रीमणिभद्रवीर का मन्दिर गांव के बाहर बहुत बडा बना हुवा है । इस तरह से और भी बदतमी जगह चश्वरी, पद्मावती, काली, महाकाली, माणिभद्र. विमलेश्वर यन आदि की स्थापना की हुई हैं । घंटाकर्ण देव की स्थापना योगनिष्ट श्रीमद् बुद्धि सागर मूरिश्वरजी महाराज ने विजापुर के पास महुडी गांव में कराई है और श्रीमान जयसिंह मरिजी महागज ने बडोदा स्टेट के मामा रोड गांव में काई है जहां बहुत से लोग उपासना करने जाते हैं। देवों की उपासना. आराधना करने में कुछ अश्रद्धालु लोग विश्वास नहीं रखते और यहां नक कहते सुना है कि यह सब कथायें कल्पित है, साधारण मनुष्य कदापि ऐसी बात कहे तो आश्चर्य नहीं होता परन्तु विद्वान शास्त्रवेता अनुभवी के मुख से प्रेमी बातें निकलें जिसका खेद है। इस बात के लिए प्राचीन शास्त्रों में बहुत उदाहरण मिलते हैं उनमें से कुछ उदाहरण यहां उद्धत करना प्रसंगोचित है । १. त्रिपष्टिशलाको पुरुषचरित्र में वर्णन आता है कि श्री कृष्ण महाराज ने अट्ठम तप करके . देव का आराधन किया था और देव हाजिर हो पाया था। २. भरत चक्रवती न देव को प्रत्यन बुलाया था । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० ] घंटाकर्ण कल्प ३. राजा रावण ने देव सहायता से कई प्रकार की विद्यायें सिद्ध की थीं । ४. श्री वज्रस्वामी महाराज को पूर्वभव के राग से मित्र देव ने विद्याएं दी थी । ५. श्री हेमचन्द्रसरिजी महाराजा ने काश्मीर में रह कर सरस्वती की आराधना की थी, और गिरनार पर्वत पर देवी की आराधना करके वरदान लिया था । ६. विमल शाह दण्ड नायक ने कुम्भारिया तीर्थ रह कर श्री अंाि देवी की आराधना की थी जिससे देवी प्रसन्न हुई और राजकाज चलाने में सहायक बनी और जिन मंदिर बनवाने में मददगार रही थी । ७. प्रियंगुसूरिजी महाराज ने अंबिका देवी की धाराधना की थी। ८. उत्तराध्ययन सूत्र में लिखे अनुसार हरिकेशी मुनि को एक यक्ष ने बचाये थे । ६. कोणिक राजा को युद्ध के कार्य में देव ने सहायता की थी । १०. जम्बूस्वामी के रास में लिखा है कि श्री मद् यशो www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटाकर्ण-कल्प [ ११ - --- -- - -- -..---- - - - -.. --- - -- - - ... - । । विजयजी महाराज ने गंगानदी के तट पर सरस्वती देवी की आराधना की थी और देवी ने प्रसन्न हो वरदान दिया था। ११. प्रभावक चरित्र में वर्णन आता है कि श्रीमान् बप्पभट्ट मूरि महाराज जो आम राजा के समय में हुए हैं, जिन्होंने सरस्वती देवी की आराधना कर वरदान दिया था। १२. सोलह सतियों को कई बार देव-देवियां सहा यक हुई हैं। १३. उत्तराध्ययन सूत्र की टीका में वर्णन आता है कि एक प्राचार्य महाराज कालधर्म को प्राप्त हुए उस समय स्वशिष्य के योग चल रहे थे वह अधूरे रह गये सो पूर्ण कराने को आये और छ महीने तक साधू शरीर में रह कर शिष्यों को सारी कथा सुना कर पुनः स्वर्ग में गये. इस कथा पर से साधुत्रों को शंका हुई कि क्या मनुष्य मर कर देव हो सकता है ? संभव नहीं इस तरह की श्रद्धा जम जाने से अव्यक्त निन्हव कहलाये। १४. सिंधु देश के उदायी राजा की रानी प्रभावती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.] चंटाकर कल्प का जीव गजा को धर्मोपदेश देने के लिये म्बर्ग से वापस आया और राजा को समकिती बनाया १५. भगवन्त परमात्मा श्री महावीर के समय में नागमारथी को स्त्री मुलपा ने पुत्र प्रामि की इच्छा से देवी की आराधना की थी, देवने प्रसन्न होकर उसको बीम गालियां दी थी जिमसे मुलमा वनीस पुत्रों की माता हुई। इस तरह से बहुत से उदाहरण मिलते हैं, फिर भी कोई नहीं माने और अश्रद्धा ही बता रहे तो यह सब भाग्य का दोष है । कई बार ऐसा भी अनुभव में आया है कि मुनि महाराज, प्राचाय महागज आदि इस विषय में कहते हैं कि महावत लिये वाद देव आगधन करने का कोई प्रयोजन नहीं रहता, उनको ऊपर बताये हुए उदाहरण में समझ लेना चाहिए, और विशेषतया छटुं गुणठाणे तक पंच महावत धारी देव की आराधना करते हैं, सातवें गुण ठाण पर पहुंचे बाद देव अाराधना की इच्छा नहीं रहती । हां ! यह बात मर्ग है कि आगधन करने की शक्ति न रही हो या तन प्रकार के साधन का अभाव हो और हम विषय के निष्णात भी न हो तो यहां एक उत्तर बचाव के लिये है कि पांच महावनी का यह काम नहीं है। । TER Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ वीराय नित्यं नमः ।। घण्टाकर्ण - कल्फर 140 16 . ल . 7 . घंटाकर्ण-कल्प की महिमा बहुत है इसीलिए जैन धर्म के प्रतिष्ठा विधान में भी इस देव का पाराधन करना बताया गया है । वर्तमान काल में भी जो मनुष्य ध्यान कर आराधन करता है उसको चमत्कार दिखता है और आशाएं फलती हैं, जब घंटाकर्ण देव का अाराधन करना हो तब स्थान शुद्धि आदि का पूरा ध्यान रखना चाहिये । स्थान विचार घंटाकर्ण देव की साधना के लिए - पवित्रस्थान में बैठना चाहिये भूमितल बाग, जलाशय अथवा देव स्थान की जगह उत्तम मानी गई है। स्थान की पवित्रता हो और उपद्रव रहित भूमि हो बाहर से किसी के द्वारा कोई उपद्रव होने की आशंका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ बंटाकरा-कल्प न हो तो ध्यान शुद्ध और शांति से हो सकता है, ध्यान करते समय मन बचन काया के योगों की एकाग्रता हो जाय तो मंत्र मिद्धि में भी विलम्ब नहीं होगा। ऊपर बताये अनुमार स्थान की नाज़ नहीं हो मक तो किसी मकान में स्थान शुद्ध देखना, एकांत कमरा हो जहां अन्य किसी का आना जाना न हो और ऐसे चित्रतसवीरें भी लगी हुई न हो कि जिनके देखने से ध्यान से चलिन हो जाय, इस तरह की व्यवस्था भृमिनल के मकान में न हो सके तो ऊपर की मंजिल का मकान हो वहां ध्यान करे परन्तु पवित्रता में किसी भी तरह का कमी नहीं होना चाहिए । कमरा चीकार मिल जाय तो ष्ट है यदि चोकार न मिले तो ऊपर पाट या गाडर्म पडे हों उनके नीचे नहीं बैठे, वाचा या देय स्थान हो तो चाकोर देखने की आवश्यकता नहीं है। सोग मार ध्यान की शरुअात अच्छे मुहूर्त में करना चाहिए, उत्तम कार्य में योग भी उत्तम हो तो काय सिद्ध होता है, सिद्धि योग, अमृत मिति योग, रवि योग, गजयोग, आनंद योग, श्रीवत्सयोग, छत्र योग आदि शुभ माने गये हैं, साथ ही चन्द्रबल भी ठीक हो लग्न भी चर स्वभाव। दो ना अच्छा है, इस तरह के शुभ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चटाकग का योग मिलने पर मुयम्बर पृर्ग म्प में चलता हो नत्र मंत्र सिद्ध करने के लिए बैठना चाहिए । ध्यान के समय में उत्तम चौघडिया स्वाति अथवा गहिणी नक्षत्र हो नी और भी अच्छा है । मन्त्र का माधन कर कार्य के लिये बैंग पराजय अथवा अन्य से ही कार्यों के लिए करना हो तो नक्षत्र मूला, हस्ताक. पुष्यार्क हो ना प्रारम्भ करना । ... शुभ कार्य में उत्तम महिना मागी. - माघ, चैत्र,वैशांव, जष्ट योर आमोज इनमें से कोई भी महिना हो शुक्ल पक्ष की पंचमी. दशमी, या पूर्णिमा हो और उस दिन क्षय निधि का योग नहीं हो तब शुरुआत करें, और पूर्ण तिथि कम घडियों में हो तो उन घडियों में ही प्रारम्भ कर देना चाहिए, ध्यान स्मरण कर कार्य रिपुमर्दन के लिए करना हो तो वाग्ह महिनों में से कोई भी महिना हो कृष्ण पक्ष की तिथि अष्टमी या अमावस्या हो तो अच्छा है । पवित्र किये हुए बरतन में स्वच्छ पानी जल शुद्धि भर कर स्नान करने की जगह साफ सुथर्ग और स्नान करने के बाद अगरबत्ती या धूप से सुग न्धित करके पानी के बरतन पर हरे रंग का कपड़ा ढांक देना और निज का दाहिना हाथ उम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटाकण-कल्प बरतन पर रख पूर्व दिशा की तरफ मुख करके नीचे लिखा हुवा मन्त्र इक्कीम बार पढे । ॥ ऊँ हाँ ह्रीं क्लीं गंगेजलाय नमः ॥ मन्त्र पग होते ही बरतन पर चन्दन चढाना और पुष्प पूजा कर घंटाकर्ण देव को नमन कर उपयोग सहित जयणा से शरीर शुद्धि करे, स्नान किये बाद वगर पानी के छींटे न लग जाय जिसका पूरा ध्यान रखे, स्नान की जगह जीवात वाली या लीलण फुलण वाली हो तो विगधना न हो जाय इस बात का पूरा ध्यान रख । वस्त्र शुद्धि जैसा कार्य हो उसकी सिदि में जैसे वस्त्र - पहनने का विधान हो वैसे ही वस्त्र काम में लेना चाहिए, जिमका वर्णन मन्त्र के विधान में किया जायगा परन्तु वस्त्र नये पहिनना चाहिए, और स्नान क्रिया करने से पहले शुद्ध बना कर तैयार रखना चाहिए, जब नान क्रिया से निवृत हो जाय तब वस्त्रों को एक थाली में रख-थाली बाजोट पर रख धूप से सुगन्धित करके दाहिना हाथ वस्त्र पर रख नीचे लिखा मन्त्र इक्कीस बार पढे। ॥ॐ ह्रां ह्रीं आनन्ददेवाय नमः ॥ इस प्रकार जाप पूरा होते ही घंटाकर्ण देव को नमन कर कपडे पहिन लेवे, तिलक का मन्त्र प्राचीन प्रत में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - घंटाका कल्प - नहीं बताया अतः तिलक वैसे ही कर लेना। आसन विचार आसन नया काम में लेना, जो पग - लम्बा चौडा हो आसन ऊन का ही काम में लेना, चोकोर घाट का या जैसा भी हो सुख पूर्वक बैठ सकें और जीव जन्तु उस पर न पा सके इस तरह की व्यवस्था रखना । लक्ष्मी प्राप्ति के हेतु अाराधन करना हो नो सफेद प्रासन, कष्ट निवारण के लिए लाल श्रासन और वर कार्य के लिए श्याम आसन लेना बताया गया है । प्रासन शुद्धि की तरफ ध्यान रखना चाहिए। जो स्थान ध्यान करने के लिए तैयार किया हो उसमें जिस जगह ध्यान करने के लिए बैठें वहां पर आसन बिछाकर बैठे बाद भूमि को विशेष शुद्ध बनाने के लिए भूमि देव की पूजा के हेतु नीचे लिखा मंत्र इक्कीस बार पढ़ । ॥ ॐ ह्रीं श्रीं भूम्यादिदेवाय नमः ॥ मंत्रोच्चार करते समय धूप दीप तो पहले से ही रहता है और पूजा के हेतु भूमि पर जल पुष्प कंकुम नैवेद्य, और फल चढाकर शक्ति अनुसार भेट करे, इस तरह क्रिया पूरी हो जाने के बाद सामग्री को देखे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - - - - -- - - ----- ... १८] घंटाकण कल्प - -- - - - सामग्री विचार आसन पर बैठकर दीपक ग्थापना के -- दाहिनी ओर रखना जिम में व्यास वान यह है कि दीये की ज्योति स्थापना में जो घंटाका देव का चित्र हो उम के आंख के बगर उंची रहना चाहिये, धूप-अगरबत्नी स्थापना के बायीं ओर रखना, आप के लिए ऐसी व्यवस्था रखना कि जलता हुवा रहे, धूप के कार्य को कोई सहायक पुरुप संभालता रहे तो अच्छा है, यदि सहायक पुस्प नहीं हो तो खुद सम्भाल ले परन्तु ध्यान न विगड जाय इसका पूरा ध्यान रखे, धूप की व्यवस्था वरावा न जमती हो तो प्रारमनी जलाना और विशेष संख्या में जलाना सोप की बटा जितना काम दे सके, दीये की ज्योत अच्छी प्रकाश वाली रहनी चाहिये, और दीप में घी पूग भर देना चाहिए ताकि जाप करते समय में कम न हो जाय । स्थापना विचार जाप करने वाला पूर्व दिशा की - तरफ मुख करके बैठे सामने बाजोट रखे-बाजोट एक पाटिये का मिल जाय तो अच्छा है, लेकिन कांटे वाले वृक्ष से निकाला हुवा पाटिया नहीं होना चाहिए, यदि चांदी का, जर्मन सिलवर का, या पीतल का बाजोट मिल जाय तो और भी अच्छा है, बाजोट Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटाकर्ण कल्प [१६ नाभिकमल से ऊँचा होना चाहिए जिस पर पीले रंग का कपडा बिछाकर घंटाकर्ण देव की मूर्ति, चित्र या कोट स्थापन करना, ऊपर छत्र लगाने की व्यवस्था हो सके तो अवश्य करना, और ध्यान करने से पहले पुष्प अक्षत चढाना, नैवेद्य पुष्प भेट करना, और एकाग्रता पूर्वक चित्त स्थिर रखकर स्मरण करना । दृष्टि में चपलता नहीं आ जाय, दृष्टि देव के ऊपर ही रहने से ताटक ध्यान सिद्ध हो जाता है, जब दृष्टि थक जाय तो अांखें बंध करके ध्यान करना और जब खोलें तब देव को ही देखते रहें, इस तरह करने से ध्यान की गति बढेगी और स्थिरता आवेगी और करते करते शुद्धता आगई तो सिद्धि भी समीप आई समझना। बैठक विचार आसन पर स्थिरता से बैठो जैसा -आसन अनुकूल हो सुखासन, पद्मासन आदि लगालो भीत-दीवार के सहारे मत बैठो. ध्यान करते समय हाथ पांव लम्बे कर आलस्य करते हुये अंग मरोडना, घुटना ऊंचा नीचा करना आदि चेष्टाएँ कभी मत करो ऐसे तरीक ध्यान को विगाडते हैं, बैठते समय इस तरह बैठो कि श्वास की नली में वायु का आना जाना सुगमता से हो सके, इस तरह करने से ध्यान अच्छा जमता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटाकर्ण कल्प माला विचार माला नाभि से ऊपर रहना चाहिए, हृदय के पास हाथ रख कर माला अंगूठे पर रखना और इस तरह से रखना कि अंगूठे उंगली का नख माला के न लगने पावे, माला के ऊपर जो मेरु होता है उसका उल्लंघन नहीं करना -माला पूरी होते ही उसको वापस फिरा लेना, ध्यान स्मरण लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किया जाय तो मध्यमा उंगली से माला फेरना, मुख सौभाग्य के हेतु स्मरण करना है तो अनामिका उंगली से फेरना - बेरीमर्दन ताडनतर्जन या ऐसे ही दूसरे कार्य के लिए आराधन करना हो तो तर्जनी उंगली से माला फेरना चाहिए, जिन पुरुषों को माला फेरने से भी आव द्वारा ध्यान करने का अभ्यास हो तो वे पुरुष आवर्त, नन्दावर्त, शंखावर्त, ऊँवर्त, नवपदवर्त, पटवर्त, आदि से जाप संख्या पूरी करले, आवर्त सब उत्तम माने गये हैं परन्तु ध्यान खण्डवर्क से किया जाय तो श्रेष्ठ है, माला से ही ध्यान करना है तो माला कैसी लेनी चाहिए जिसका वर्णन आगे किया नायगा । २० ] ऊपर बताया हुवा विधान प्रथम दिन ही करने का है बाद में जितने दिन विशेषतः जाप चले स्थापना सामग्री का उपयोग नित्य करना चाहिए Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - घंटाकर्ण-कल्प परन्तु कपड़े मान जल भूमि शुद्धि आदि का जो विधान बताया है उसे नित्य करने की अावश्यकता नहीं रहती वस्त्र शुद्धि शरीर शुद्धि जैसी रखना चाहिए जिसका उपयोग रखे. दीपक नित्य साफ कर लिया करे और दीपक लालटेन में रखे, दीये की ज्योति जितनी प्रकाशमान होगी उतनी ही मंत्र शक्ति बढेगी, फल आदि नित्य भेट करना, रूपानाणा प्रथम दिन रखा हो वह स्मरण चले वहां तक रहने देना, कपडे नित्य साफ कर लेना, स्मरण चले उतने दिनों तक ब्रह्मचर्य पालना, भूमि शयन करना, दुव्र्यसन का त्याग करना सत्य बोलना और सोते समय पूर्व दिशा की तरफ सिर करके सोना, रात्रि में स्वप्न आये तो याद रखना स्वप्न आये बाद नींद नहीं लेना देव स्मरण में रात्रि व्यतीत कर प्रातः काल में फल हाथ में रख स्वप्न देव के समक्ष नयान कर फल भेट कर देना। ___घंटाकर्ण देव क्रूर स्वभावो है, इस लिए शक्ति के अनुसार आराधन करना किसी तरह का चमत्कार मालूम हो स्वप्न में दिखाव हो तो डरना नहीं, धीरज रखना-वैसे तो समयानुसार सत्र होता है देव प्रत्यक्ष आचें ऐसी पुन्यायी भी नहीं होती-देव तो परोक्ष रह कर ही भावना पूरी कर देते हैं, वर्तमान में ऐसे संघयन-मंठाण भी नहीं है तो भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२] घंटाकर्ण कल्प हर तरह से ध्यान रख कर सत्य निष्टा से अाराधन करना सो शासन रक्षक घंटाकर्ण देव मनेच्छा पूर्ण करेगा । ध्यान स्मरण करने के प्रथम दिन सुखडी चढाने की प्रतिज्ञा लेना चाहिए ओर ध्यान सम्पूण हो उस दिन शक्ति अनुसार सुखडी की भेट करना सुखडी सवापांच सेर से कम नहीं चढाना, और चढाकर उसे बांट देना चाहिए, कोई मन सवा मन की भी चढ़ाते हैं जैसी जिस की भावना और शक्ति हो तदनुसार चढ़ावे । उत्तर क्रिया उत्तर क्रिया में विधान के साथ हवन " करना बताया है। हवन के नाम से घबराने की आवश्यकता नहीं है यह हवन वैसा नहीं है कि जिसके करने में आपत्ति हो, हवन के लिए सामग्री में जिन जिन वस्तु का नाम आता है, उनका मिश्रण एक प्रकार से धूप का काम देता है, मंत्र शास्त्र देव को प्रसन्न करने के लिए जितनी तरह के उपाय बताये हैं उनमें हर तरह की क्रिया की प्रधानता रखी गई है, यह वस्तु प्राचीन प्रत में जैसी लिखी है उसी के अनुसार इस पुस्तक में लिखी गई है, अब करना न करना यह तो आराधक पुम्प के प्राधीन है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - घंटाकर्ण-कल्प [२३ हवन किया का स्थान बाग हो, जलाशय के पास -हो, देव मन्दिर हो, या किसी उत्तम वृक्ष के नीचे हो. भमि शद्धि वरावर कर के पवित्र बनाना चाहिए हवन के लिए जो सामग्री एकत्र की हो तांबे की थाली में रखना चाहिए, हवन कुंड बनाकर उसमें मंगल मिट्टी बिछाकर पलास, पीपल या चंदन की लकडी के टुकडे जमा कर अष्ट द्रव्य से हवन कुंड की पूजा करना और आसन पर स्थिरता कर कपूर की ज्योति से अग्नि प्रज्वलित करना, हवन करते समय एक दो सहायक अवश्य चाहिए, उनके आसन भी हवन मंडप में लगाना और जब पाहुति दी जाय उसके साथ ही स्वाहाः पल्लव एक साथ ही बोलते रहें, इस तरह करने से मंत्र शक्ति बढती है, और मंत्र सिद्ध होता है। हवन करते समय घंटाकर्ण देव का चित्र ओर यंत्र हसन मंडप में अवश्य स्थापन करना चाहिए यह विधान सामान्य तरीके पर लिखा गया है, जो मनुष्य इस तरह की क्रिया कराने में निष्णात हों और विशेष प्रकार से तैयारी करके उत्तर क्रिया कर सकते हों उनही की सानिध्यता में क्रिया करना चाहिए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंटाकण कल्प ॥ दुष्ट देव भय हर ॥ दुष्ट देव, राक्षस, भूत, प्रेत, डाकिनी, शाकिनी के उपद्रव को मिटाने के लिये घटाकर्ण का म्मरण ययालीम दिन तक करना चाहिये । प्रातःकाल ,मध्याह्न और सायंकाल में एक एक माला फेरना, ओर जाप करते समय घी का दीपक व अगर आप अवश्य रखना चाहिये, जब जाप पूरे हो जाय तब अच्छा दिन शुभ मुहृते देखकर उत्तर क्रिया करना जिसमें एक चोकोर हवन कुंड बनाकर पास में ही घंटाकर्ण देव की स्थापना करना, आह्वान पूजन आदि करके हवन करना चाहिये हवन की सामग्री में काली मिरच, सरमुं, पुरानी साल, ( जिममें से चावल निकलते है। ) घृत, और शकर शुद्धमान लेकर एक नांव के बरतन में अथवा तांबे की थाली में लेकर मन में मंत्र बोलना और आइती देते समय "स्वाहाः" शब्द ऊंचे स्वर से कहे, हवन मंडप में पुरुषाकार यंत्र की स्थापना भी करना चाहिये जिससे कार्य सिद्धि शीघ्र होगी, और उमी दिन भोजपत्र कागज या कपडे पर अष्ट गंध से लिख कर यंत्र तैयार कर पास में रखा जाय तो फलदाई होता है, हवन का उल्लेख आगे बताया जायगा सो देख लेवें। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटाकर्ण-कल्प ॥ पुरुष भय हर ॥ बहुधा देखा जाता है कि तामसी प्रकृति वाले और मलीन मन के लोग दूसरे को पीडा पहुँचा कर आनन्द मानते हैं, और इस तरह के मनुप्य माधारण समुदाय के, बडे आदमी के, धनवान के, और राजकीय पुरुषों के पीछे लगजाते हैं, इस तरह व्यक्तिगत वैरी खडे हो गये हों और विविध प्रकार से यातना पहुँचाते हों तो घंटाकर्ण देव का जाप ज्यादे से ज्यादे बयालीस दिन में तेतीस हजार जाप पूग करना चाहिये, और सम्पूर्ण होने के बाद शुभ मुहूर्त देख उत्तर क्रिया करे जिसमें दूध, दही, घृत, केसर और गुग्गल को मिलाकर हवन करे सामने सिद्ध पुरुष की जगह पुरूपाकार यंत्र की स्थापना करे जिससे भय नष्ट हो जायगा और चैरी का पराजय होगा। ॥ लक्ष्मी प्राप्ति ॥ लक्ष्मी प्राप्ति के लिये घंटाकर्ण का सवा लाख जाप करना चाहिये इस कार्य के लिये दिन की मर्यादा नहीं है, परन्तु जाप नियमित कर पूरा कर लेवे, और सम्पूर्ण होने बाद शुभ मुहूर्त देख उत्तर क्रिया करे हवन में बादाम, पिरता, दाख, चारोली, कपूर, केसर, घृत, शकर और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - घंटाकरण-कल्प चन्दन इस तरह शुद्धमान वस्तु को मिलाकर हवन क्रिया पूरी करे, और पुरुषाकार यंत्र की स्थापना हवन मंडप में अवश्य स्थापित करें। ॥ लक्ष्मी प्राप्ति यन्त्र ॥ यह यन्त्र पुरुषाकार बनता है, जो आगे बताया जायगा, इस तरह का यन्त्र ऊपर बताये हुए तीन विधानों में काम आता है, जिस मनुष्य को घंटाकर्ण देव का इष्ट हो उसे चाहिए, कि सोने का, चांदीका, तांबे का, अथवा सबंधातु का यन्त्र बनवा कर नित्य पूजा किया करे, अब साथ ही यन्त्र बनाने की तरकीब बता देते हैं । - एक पुरुषाकार चित्र बनाना उसके अवयव मान उपमान प्रमाण बनाकर उदर विभाग पर बारह कोठे का यंत्र बना कर उसमें अनुक्रम से यह अक्षर लिखना ॥ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वदुष्टनाशनेभ्यः ॥ ऊपर मुशाफिक बारह अक्षर लिखे बाद कंठ विभाग में "श्रीं नमः" लिखना, बायीं भुजा में "सर्वे ह्रीं नमः" लिखना और दाहिनी भुजा में "शत्रुनाशनेभ्यः नमः" दाहिने पांच में "1 नमः" लिखना वांये पांच में "हाँ ह्रीं हूँ नम:" लिख कर पुरूषाकार के आस पास घंटा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घटाकर्ण-कल्प कर्ण स्तोत्र को वेष्टित रूप में लिखना, इस तरह भोज पत्र आदि पर अष्टगन्ध से लिख कर साध्य करने के लिए बादाम की गिरी, खारक और दाख लेकर घृत शक्कर मिश्रित कर हवन करना और सिद्ध करने के बाद यंत्र को अपने पास रखना जिससे राजभय देवभय मिट कर यश वृद्धि होगी, सुख सम्पत्ति और लन्मी की प्राप्ति होगी इस तरह के यंत्र को कल्पवृक्ष के समान बताया गया है। ॥ लक्ष्मी प्राप्त्यर्थ यंत्र दूसरा ॥ मंत्र का जाप तो पहले बताया है उसी तरह करे और षटकोण यंत्र अष्ट गंध से लिखे, के कोने में छे अक्षर इस प्रकार लिखना, "ऊँ हाँ ह्रीं हूँ ह्रौं नमः" लिख कर चोकोर घंटाकर्ण स्तोत्र लिखना, विधि सहित तैयारी करके साधक पुरुष को सिद्ध कराना, क्रिया करते समय पूर्व दिशा की तरफ मुँह करके बैठना, सफेद वस्त्र पहिनना अासन व माला भी श्वेत होनी चाहिये, साधन करने के दिनों में ब्रह्मचर्य पालन करे ओर सवा लाख जाप बहत्तर दिन में सम्पूर्ण कर लेवे, हो सके तो दूध के आधार पर रहे और शक्ति न हो तो नित्य एकासना किया करे जिसमें श्वेत वस्तु विशेष काम में लेये, जाप करते समय धूप दीप अवश्य रखना, उत्तर क्रिया में बादाम की गिरी, दाख, चारोली Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८] घटाकगा-कल्प और घृत, शक्कर, कपर, चंदन का हवन करके यंत्र को अपने पाम रब तो छ महिने में ही धन प्राप्ति होगी और सुख सम्पति की वृद्धि होगी। ॥ वशीकरण ॥ घंटाकण दव प्रभावशाली है और जैन शासन की रक्षा करता है अतः इसका श्राराधन शुभ काय में ही करना चाहिये, जिनकी मति मलीन होगी पैसे पुरुप को मिद्ध भी नहीं होगा, अतः जब ऐसा कार्य हो तो माधन करते समय उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके बैठे, लाल रंग के वस्त्र पहिन कर आसन व माला भी लाल रंग की काम में लेवे, त्रिकाल एक एक माला बयालीम दिन तक फरे, इमी विधान में जाप मवा लाख भी बताया है सो जमा कार्य और समय हो वैसा उपयोग करे सामने स्थापना के सिवाय चतुकोणिक यंत्र जिसके अंतर्गत पटकोण है बाजोट पर स्थापित करे धूप दीप नैवेद्य फल भेट रखे और उत्तर क्रिया करते काली मिरच, रक्त चंदन , ओर घृत का हवन कर जिम कार्य के लिये आराधना की हो घंटाकर्ण देव से प्रार्थना करे मो कार्य सिद्ध होगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'घंटाकर्ण-कल्प ॥ शत्रु उच्चाटनार्थ । शत्र विशेष प्रकार से पीडा पहुँचाता हो तो घंटाकर्ग मंत्र का विधि सहित चम्मालीस दिन में चम्मालीस हजार जाप पूर्ण करे पश्चिम दिशा में मुंह करके बैठे, पीले रंग के वस्त्र पहिने और प्रासन व माला भी पीले रंग का काम में लेवे, उत्तर क्रिया में सरसु. वेहड़ा, और कड़कर नेल का हवन किया जाय जिससे शत्रु भय राकर परास्त होगा और पीडा मिटेगी। ॥ पुत्र प्राप्त्यर्थ ॥ पुत्र प्राप्ति के लिये इक्कीस दिन तक त्रिकाल एक एक माला फेरे, और विशेष साधन में दश महिने तक माला फेरे, साधन करते समय चायुकोण-विदिशा की तरफ मुह करके बैठे सफेद वस्त्र प्रासन माला काम लेवे, उसर क्रिया में हवन नहीं बताया गया, इकीस दिन जाप करे तप साथ ही दशांग धूप की घटा रखे, तो पुत्र प्राप्ति हो, और दश महिने तक ध्यान स्मरण करने वाले को तो गया राज, गई लक्ष्मी वापस प्राप्त हो और सुख सौभाग्य यश कीर्ति संपादन हो। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटाकर्ण कल्प ॥ दुर्बुद्धि नाशनाय || किसी मनुष्य की बुद्धि बिगड गई हो और दूसरे मनुष्यों का अनिष्ट चितवन किया करता हो तो उसकी बुद्धि ठिकाने लाने के लिये पच्चीस दिन में दस हजार जाप पूर्ण करले, और गुग्गल, घृत, शक्कर, कपूर, मिश्रित कर हवन करने से, दुर्बुद्धि ठिकाने आ जाता है, रोग मिटे, सुख दे और शत्रु का पराजय हो । विशेष में चार सो जाप नित्य प्रति पचीस दिन तक जाई के पुप्प से करे तो शीघ्र सिद्धि होगी पुत्र स्थापना पर जाप पूर्ण होते ही सीधा चढाता जाय जिसका बीट ऊपर रहे। ३० ] ॥ कुंवडावनार्थ ॥ किसी स्त्री की कख बंध हो गई हो तो घंटाकर्ण देव का आराधन करके सात वृक्षों के पत्ते मंगवाना ( १ ) चम्पा, (२) चमेली, (३) मोगरा, (४) नारंगी, (५) नींबू, (६) लाल फूलों का कनेर और (७) सफेद फूलों का कनेर इस तरह सातों वृक्ष के पत्तं शुद्ध कर लेवे और इक्कीस *वों का पानी मंगवाना और एक तांबे के घडे में भर लेना, घडे के ऊपर पांच (हीं) कार लिखना और एक (श्रीं) कार लिखना घडे के ऊपर सात बार टीप देना अर्थात् मध्यमा उंगली को अंगूठे से घड़े के ऊपर फटकारना, इतनी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटाका कम्प [६६ क्रिया के बाद घडे के गल डोग बिला) बांधना, वाद में घंटाकर्ण मंत्र पढते जाना और मान भांति के पत्ते उसके ऊपर बांधना और फिर चांवल की मांडली बदाका उमकं ऊपर सात बार कलश को पार कर मांडली पर रख देना, दीपक चार वत्ती का बना, धूप अखंड चलता रहे, ऐसी योजना करना । फिर घंटाकर्ण मंत्र का जाप करना जाय और साथ ही वादाम की गिरी, दास. खारक, चारोली, पिश्ता, जब, तिल, उडद, शहद, शक्कर,अधीर, चावल और घृत मिश्रण कर हवन करता जाय क्रिया सम्पूर्ण होने पर अबोले कलश को लेकर घुटने प्रमाण पानी में रख आवे, इस तरह सात दिन तक करे और साथ ही सातों दिन की क्रिया में गली के रंग का डोरा जिसको नीला डोरा भी कहते हैं मंत्रित करते जाना उस डोरे को सातवें दिन स्त्री को स्नान करा के शुद्ध वस्त्र पहिने बाद डोरा गले में बांध देना जिससे कंख चलने लगेगी और सौभाग्य बढता जायगा पुत्र प्राप्ति होगी । ॥मृतवच्छा उपाय ॥ — मृतवच्छा का यह मतलब है कि किसी के बालक होकर जीवित नहीं रहता हो और अल्प आयु में ही मृत्यु हो जाती हो उसे मृतवच्छा दोष कहते हैं, जिसका निवारण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- ३२] घंटाकर्ण -कल्प करने के लिये घंटाकर्ण देव की आराधना करने को बनीमा वों का पानी मंगवाना जिसको एक शुद्ध वस्तन में भर लेना और नौ वृक्षों के पत्ते मंगवाना [१] अनार, [२] फालमा, [३] अडसा, [४] ग्राम, [1] लाले फलों का कनेर, [६] सफेद फूलों का कनेर, [७] सेवंती, [0] नारंगी और [ ] अंजीर के पत्ते एक थाली में म्ख [१] जाई, [२] चम्पा, [३] चमेली, [४] कदंब, और [५] अनार के पुष्प मंगवाना, और बतीस कुवों के पानी को मंत्रित कर देना जिससे पांच रास्ते मिलने हो वहां जाकर या मकान में ही स्त्री को उम पानी से स्नान करने के लिये कहना | स्नान करने के साथ ही वृक्षों के पत्तं व पुष्प पानी के साथ ही ऊपर गिरते जांय ऐसी व्यवस्था करे और शुद्ध वस्त्र पहिनने के बाद एक डोरा मंत्रित कर गले में बांध देवे तो मृतपच्छा दोष अवश्य टल जाता है, और मंतान दीर्घ आयु वाली होगी। ॥ सर्व प्रयोगार्थ विधान ॥ इस मंत्र के प्रभाव से रोग का नाश होता है, मृगी रोग जाता है, मार्ग में स्मरण करने से तस्कर हिंसक जानवर आदि का भय टल जाता है, ताव, एकांतरा, तिजारी आती हो तो कसुंक्त डोरा इक्कीस बार मंत्रित कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटाकर्ष-कल्य [ ३३ गले पर बांधने से ताव चला जाता है, और शाकिनी डाकिनी भूत प्रेत पिशाच के उपद्रव में चौरासी बार सात दिन तक झाडने से सारा उपद्रव मिट जाता है, और शरीर में पीडा होती हो वह नाश हो जाती है । ॥ एक सो बत्तीस कोष्टक यंत्र || ऊपर बारह कोठे करना और वहीं से नीचे की ओर म्यारह कोठे बनाने से कुल एक सो बतीस कोठे होंगे, जिनमें ऊपर एक कोठा अलग बनाकर उसमें ( ह्रीं ) लिखना और फिर प्रथम कोठे से "ॐ घंटाकर्णो महावीर" इस तरह एक एक कोठे में एक एक अक्षर लिखते जाना यंत्र अष्टगंध से लिखना पवित्रता आदि का वर्णन ऊपर के विधानों में किया है उसी मुआफिक रख विधान करना और पंचामृत हवन करना जिसमें दूध, दही, शक्कर, घृत और खारक इन सबको मिश्रित करना, फिर यंत्र को पास में रखना जिससे रक्षा होगी, सहायता मिलेगी, सर्प का भय जायगा, शाकिन्यादि दोष मिटेगा और सुख सौभाग्य धन सम्पत्ति की वृद्धि होगी । (यंत्र मागे देख लेना ) ॥ चोकोर यंत्र रचना ॥ चोकोर यंत्र बनाकर उसको घंटा के आकार में www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटाकर्ण-कल्प वेष्टित करना और ऊपर व बीच में ( ॐ ) लिखना बाद में दमरे मंत्रातर लिखते जाना भोजपत्र या कपटे अथवा कागज पर अपगंध से लिखे बाद में दशांग हवन कर यंत्र को पास में रखे तो धन धान्य लक्ष्मी की वृद्धि होगी और कष्ट-उपद्रव के समय में रक्षा होगी, सोने और चांदी के पतडे पर भी यह यंत्र बनाकर पास में रखने का विधान है जैसी जिसकी शक्ति व इच्छा हो वैसा करे यंत्र का नमूना आगे जो यंत्र संग्रह में बताया जायगा वहां देख लेना। उपरोक्त यंत्र टोकर पर लिखकर ढोर के गले टोकर बांधने से आवाज सुनने वाले ढोर का रोग नष्ट हो जायगा इस तरह के रोग की उत्पत्ति हो तब इस यंत्र को लिखने के बाद दूध, दही, घृत और दाख मिश्रित कर हवन करना सो सर्व पीडा मिट जायगी। ॥ अष्टदल कमल यंत्र ॥ अष्ट दल कमल करके उसके बीच में इस तरह लिखना। "ॐ घंटाकर्ण महावीर देव दत्तस्य । सर्वोपद्रव क्षयं कुरु कुरु स्वाहा” ॥ इतना लिखकर कमल के आठ कोठों में ऊँ, ह्रीं, ऊँ, हीं, ऊँ, ह्रीं, उ, ही, इस तरह आठ अक्षर लिखना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटाकणे- -कल्प [ ३५ और उन सर्व कोठों के ऊपर गोलाकार लकीर खेंच कर उसमें गोलाकार ही एकसो पैंतीस अक्षर का मंत्र ॐ घंटाकर्ण महावीर आदि लिखना, इस तरह का यंत्र चांदी के, सोने के, तांबे के पतडे पर या भोजपत्र, कपडा और कागज पर लिख सकते हैं, और यंत्र को अष्टगंध से ही लिखना चाहिये । बाद में मंत्रित कर दही, दूध, घृत, शक्कर, शहद, दाख, खारक, खोपरा, बादाम, चारोली इस तरह दश वस्तु को मिश्रित कर हवन करना जिससे यंत्र सिद्ध होगा और यंत्र को पास में रखना या जनता के लिए अथवा गांव के लिये खास उपद्रव हटाने के लिये हो तो टोकर में बांध गांव के मध्य में लटका देने से भय दूर होगा, तमाम भय मिटेगा, सुख की वृद्धि होगी, सौभाग्य बढेगा और यश कीर्ति फैलेगी । ॥ राज भय हरण ॥ किसी के ऊपर आपत्ति आ गई हो तो इस मंत्र का जाप करे और पहले बताये हुवे बयान सहित ध्यान शुरु करे तब लाल रंग के वस्त्र पहिनना, लाल आसन, लाल पाटला, पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके बैठना और लाल कनेर के पुष्प से दश हजार जाप करना, पुष्प घंटाकर्ण यंत्र पर या चित्र पर चढाता जाय और दश हजार गुग्गल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६] घंटाकर्ण कल्प की गोलियां बनाकर हवन करता जाय इस तरह यह क्रिया सात दिन में पूरी कर लेवे नित्य एकासना करे और श्वेत वस्तु का भोजन करे तो राज भय नहीं होगा। बंदीवान को छुडाने के निमित्त जाप किया जाता हो तो वस्त्रादि तो लाल ही चाहिये परन्तु मुख पश्चिम दिशा की ओर करके बैठे और खुद के लिये हो तो "मम मोक्षं कुरु कुरु" कहकर जाप करते जाना और किसी दूसरे के लिये हो तो उसका नाम लेकर याने "अमुक बंदी मोक्षं कुरु कुरु' कहते जाना सात दिन तक जाप करना पंचामृत से हवन करना सो सर्व प्रकार की सिद्धि प्राप्त होगी। ॥ विविध भय हर ॥ (१) शाकिनी द्वारा कष्ट हो रहा हो तो एक सो आठ बाप कर एक सो आठ गुग्गल गोली का हवन करने से पीडा मिट जायगी। (२) मकान, महल, गृह में भृत, यक्ष आदि का उपद्रव होता हो तो दश हजार जाप दश हजार गुगल गोली से किया जाय जिससे सर्व मय मिट जायगा, और जाप के साथ नित्य हवन घृत, गुग्गल काम में लेना सो सर्व भय मिटेगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - घंटाकर्ण-कल्प (३) राक्षस का उपद्रव हो रहा हो तो एक हजार जाप और गुग्गल से हवन करना सो भय दूर हो जायगा। (४) अग्नि भय में इक्कीस बार जल को मंत्रित कर छांटने से आग उपशम होगी। (५) चोर भय मिटाने को कंकरी मंत्रित कर आठों दिशा में फैकने से तस्कर भय नाश होगा, अथवा मंत्र बोलकर कपडे के या डोरे के इक्कीस गांठ लगाने से भी मार्ग भय मिट जाता है । (६) सर्प का उपद्रव मकान में होता हो तो एक सो आठ बार मंत्र बोलकर पानी मंत्रित कर मकान में छांटने से भय दूर होता है। (७) सर्प का विष चढ गया हो तो एक सौ आठ बार पानी मंत्रित कर पिलाने से विष उतर जायगा साथ ही नींब के पत्ते अथवा निंबोली मंत्रित कर चबाने को देना चाहिये। (८) इस मंत्र से डोरा कर देने से ताव, एकान्तरा, तिजारी, बेलान्तरा चला जाता है । (8) गर्भ पीडा होती हो तो एक सौ आठ बार मंत्रित किया हुवा पानी पिलाने से पीडा मिट जाती है। इस तरह से प्रत्येक कार्य में घंटाकर्ण लाभदाई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ] घंटाकर्ण कल्प बताया गया विश्वास रख शुद्धि के साथ एकाग्रता पूर्वक आराधन करने से देव प्रसन्न होता है । जाप के अंत में कह देना चाहिये कि - "अपराध सहस्राणि नित्यशः क्रियते मया ॥ तत् सर्वं क्षम्यतां देव ! प्रसीद परमेश्वर ॥। १॥ आह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनं ॥ पूजाच न जानामि, त्वं क्षमस्व परमेश्वर " ॥ २ ॥ ॥ यंत्र-मंत्र वर्णन ॥ घंटाकर्ण के आठ यंत्र बताये गये जिनमें से एक तो एकसो बत्तीस कोठे वाला यंत्र है, और दूसरा पुरुषाकार यंत्र है जिनका वर्णन पहले आ चुका है, और बाकी जो यंत्र हैं जिनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है । यंत्र तीसरा जिसमें एक सो चम्मालीस कोठे हैं, और मध्य में पंदरिया यंत्र लिखा हुवा है, जिनको पंदरिये यंत्र द्वारा लाभ प्राप्त करना हो उनको इस यंत्र का उपयोग करना चाहिए | यंत्र चौथा एकसो चोपन कोठे का है इस यंत्र में दोनों तरफ मंत्राक्षर लिखे हैं, अतः दोनों तरफ के मंत्राक्षर द्वारा ध्यान करना चाहिए, प्रथम मंत्र में ऊँ के नीचे जो मंत्राक्षर नीचे वाले कोठों में लिखा है उसका एक मंत्र Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटाकर्ण-कल्प [ ३६ बन जाता है, दूसरे ॐ को लेकर ह्रीं से नीचे के कोठों में जो मंत्राक्षर लिखे हैं उनसे दूसरा मंत्र बन जाता है, इम यंत्र में दोनों तरफ मंत्राक्षर लिखे हैं यह यंत्र द्वारा रक्षा करने वाले हैं अतः इस मंत्राक्षर संयुक्त यंत्र को सावधानी से सिद्ध करना चाहिए। यंत्र पांचवां-इस यंत्र की विशेष महिमा है, स्तोत्र के साथ ही इसमें मूलमंत्र भी लिखा गया है, एकसो छन्यु कोठे का यह यंत्र है घंटाकर्ण देव का इससे बड़ा कोई यन्त्र नहीं है । मूलमंत्र द्वारा घंटाकर्ण देव को प्रसन्न करना है, इसके अतिरिक्त मध्य में एकसो सित्तरिया यन्त्र और तिजय पहुत स्तोत्र का मूल मंत्र लिख कर मध्य में ही पंदरिया यन्त्र लिखा है, जिससे स्तोत्र, मन्त्र, यन्त्र, मंत्र, और यन्त्र पांचों ही द्वारा यह यन्त्र बना है, एकसो सितरिया अंक के साथ ही मंत्राक्षर लिख और भी विशेषता कर दी है, अतः इस मंत्र-यन्त्र को सावधान रहकर सिद्ध करना चाहिए पहले घंटाकणे को मूलमंत्र द्वारा सिद्ध कर एकसो सितरिया यन्त्र को मंत्राक्षर से सिद्ध करना चाहिये और फिर पंदरिया यन्त्र लिखना-इससे जितना बताया गया है सब उत्तम है। ___यन्त्र छट्ठा पटकोण वाला है, इसका मूलमंत्र तो छ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० ] घंटाकर्ण-कल्प कोनों में जो भत्राक्षर हैं उनही से बनता है, और ऊपर नीचे चार मंत्राक्षर लिखे हैं, इस तरह से समझ कर इस यन्त्र को सिद्ध किया जाय तो लाभप्रद होगा। यंत्र सातवां अष्टकमल दल वाला है, जिसमें स्तोत्र लिखकर ऊपर के भाग में "नमोस्तुते" लिखकर आगे ठः ठः ठः फट् स्वाहाः लिखा है यही मंत्राक्षर भी है, और अष्टकमल दल में रक्षा स्थापना है, और गोलाकार में मंत्र लिखा है, इस मंत्र द्वारा सिद्ध किया जाय तर "देवदत्तस्य" के स्थान पर उसका नाम लियाजाय कि जिसके लिये यन्त्र बनाना है, और यन्त्र में भी उसीका नाम लिखना चाहिए। यन्त्र पाठवां जिसमें घंटा का चित्र है और घंटा के मध्य में मंत्राक्षर महावीर के नाम सहित लिखे हैं, अतः इसी तरह का बनवा कर जिस कार्य को सिद्ध करने के लिए बनाया जा रहा है संक्षिप्त से वर्णन-नाम लिखना और सिद्ध करना सो लाभ पहुँचाएगा। ____सारे यन्त्र अष्टगंध, पंचगंध, अथवा यक्ष कर्दम से लिखना चाहिए, इस बात का निश्चय यन्त्र लिखने वाला ही करले-जिस तरह का कार्य सिद्ध करना हो वैसा ही सुरभिगंध यन्त्र लिखने में होना चाहिए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री घंटाकर्ण यंत्र नं. घंटा क महावीर सर्व व्या र पंक्ति निरोगा स्त 10-15 [जपा) क्षयं शा कि नी नज एतस्य न च स फैलि तारखे जस्ती घंटा (FC) ठः ठः ठः स्वाह GOGOLGOEDE B ए य E विधिवि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara S प नाक विस्फोट एएएएफएस bhandan.com Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 ऊँ घंटाकर्ण महावीर, सर्व व्याधि विनाशकः ।। विस्फोटक भयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबल ॥ १ ॥ श्री घटाकर्ण देव यंत्र नाकाले मरणं तस्य न च सर्पण दस्यते ।। अग्नि चोर.भयं नास्ति, ह्रीं घंटाकर्ण नमोस्तुते ।। ४ ।। ठः ठः ठः स्वाहाः ॥ मात्रुनार मवेकानमः रोगास्तत्र प्रणश्यति, वात-पित्त-कफोद्भवाः ॥ २ ॥ यन्न त्वं तिष्ट से देव, लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः ।। रोरीरुनमः TIPS OM शाकिनी भूत वैताल, राक्षसा प्रभवन्ति नः ॥ ३ ॥ तत्र राजभयं नास्ति, यांति करणे जपा क्षयं ॥ Shree Sudharmaswami Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TE RRRRRRES BREA Food Free घटक श्र TedE ELEC यं नू E 1516 मो F ब Shree Sudha 228999999329999999992299932222222222 श्री घंटाकर्ण यंत्र नं. वी पंक्ति 52 म स्य X ::: फट स्वाद ना न ना का A X E P स्त A स व E X X ㄓ व्या XX 风活 COETTER Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कार्य यज्ञ 3. "घंटाकर्णमदावीर सर्वव्याध विनाशक विस्फोट कसं शाकिनीत वेताला राक्षसाधनवंतन फोनवाः तत्रराजतीनास्तिः यांतिक ज स्तुते वः स्वाहा एलक्ष्मीप्राप्ती यंत्र है, झी जी नमः Shree Sudharm 45 1) . श्री कूं जूं नाकालमरणं तस्यः नवसप्तमस्ते कारक्षरक्ष महाबल यत्रत्वंतिष्ट सेदेव लि. Role:Panselucky Balakata Kami Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री घंटाकरण नं. जिनमः कारवटा क रम हा वारसव रोगा स्तनपाय तिर वा तरकार LEवति नाना कारने मिरर STEM मोस्तु ते काम नरवा हा । OME र रन मोबा SITE५८०२ क्षि र ५ EFFERस ७५२ प हन्तु उस र CE R३५ पचर ७ मा हार FORSEE स२०२ हा सुसा area ransDAR 200S THENTS FAREEREST REMक कारन बार त बस जरना ना । व व्या विरवि नारक कवि स्फोट क न बरमा TEEEEEEEEEERS Shree Sudan Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीघराकर्ण यंत्र नं. घटा कर म हा कार सवा या विका जपाय कि नानू । Eत स्यानाचसावाबासाथी घराक RIEIFIEFT: स्वाहा FEE150002 CREAMERIES ENEFTensiy FFORDERevNDOWS IMGENICIPEEDSymptate DES 5 a FIFATISmस्य एन00miy Faaता ला सक्ष व्यं तिवातावित विनाशकाविस्फोटकमाया ते. onal SAE SEE रवार CODEDICTETTERTApTETamarMEERAGICLES Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री घटाकर्ण यंत्र न. VAYAYAYAYAAYAAAAAA घटाकरात नराजभटाका महावारस पित्तकफाभवा माधाघटाकरानतर लियातिक PAGटराक CUSERIES Kaपायाको स्वर WWWW व. कुरू माधविनाशकावस्या विगउस्यते निरिक्ताक्षरता takesb वदत स्या नीतवताला विस्फोटकनटार JH tree geluaeres CELECIPE (SELe SEKSUARIU REETIC मान Shree Sucharmawan bhee Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री घटाकर NON विस्फो टक नया से रक्षरल मदाबन यत्रत्व बेताना राकसानवतिन नाकालेमर 4000 CO AARYAARAAMKAMAST घंटाकर्ण महावीर सर्वव्याधिविनाशक नास्तियांतिकऐजपाक्षयं वाकिनीनूत. 0000 हममानहाइ तिष्ट.सेदेवनिवितोक्षर पशिशिः रोगास्नत्र OUCO COM 10 BIFILEKEram WAVAV 00 लटानास्तिहीघंटाकर्णनमस्तुतेवावःस्वाहा पण यति वापिसकफोनवाः तत्रराजन्न । LAY AAAAAAAAAAAAAAY VVAVVYAVAYAKYAY Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ભાવનગર Vlera Shree Sudharmaswami Gyanihandar-Umara Surat ww.umaragyanbhandar.com ::