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पद से आपको पदस्थ किये, शासन का भार लिया हितवत्सलता बढी और जीवन ज्योत जगती रही और समाज के धार्मिक कार्यों में आपने पूरा लक्ष्य दिया और दादागुरु के नाम पर चलती ज्ञान संस्था के लिए स्थाई द्रव्य कोप बढाने में उपदेश देकर लाभ पहुँचाया प्रतिष्ठाएँ और नूतन जिन मंदिर निर्माण कराने में ज्ञानशाला स्थापत कराने में भी आपका पूरा लक्ष्य था, वैसे आप भोले स्वभाव के थे, इस तरह की गुणमाला से सुशोभित गुरुदेव श्रीघंटाकर्ण देव के प्रति बहुमान रखते थे, और जैन संसार का हित होने के हेतु ही आपने श्री घंटाकर्ण की मूर्ति की स्थापना कराई इसी कारण से इस घंटाकर्ण कल्प नाम की पुस्तक की अर्पण पत्रिका स्वीकार करने के अधिकारी भी आप ही
खेद इस बात का है कि इस पुस्तक के प्रकाशन को आप दृष्टि से नहीं देख सके और समय से पहले ही स्वर्ग सिधाये | क्या ही अच्छा होता कि यह प्रकाशन आपके कर कमलों में पहुंचता और सम्पादक की भावना और परिश्रम को सफल बनाता - फिर भी इस सफलता को स्वर्ग में ही स्वीकार कर अनुगृहीत करियेगा |
आशीषाभिलाषी
चन्दनमल नागोरी
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