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घंटाकगण कल्प
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लोगों ने चित्र बनवाने में घंटाकर्णी देव के चरणों में इन बीजाक्षरों को लिखवाया है अनुचित किया है। इस तरह से मन्त्राक्षरों का अनादर करना उचित नहीं था, न इस तरह से लिखने का कोई प्रमाण बताया गया । घंटाकर्ण का शब्दाथघंटा जिसमें से आवाज निकलती हैं और कर्ण कान को कहते हैं देव तव सिर हिलाता है तब कान के पास घंटा बजता है, उसी का नाम बंटाकर्ण है। नाम संस्कार के अनुसार दो कान हैं तो दो ही घंटा का होना उचित माना गया है, इस देव का सेवक सर्प के रूप में रहता है, और सर्प के रूप से ही परीक्षा लेता है, अतः घंटाकर्ण के चरण के पास सर्प का चिन्ह अवश्य होना चाहिए। सर्प का चिन्ह भी मुँह फाडे नहीं होना चाहिए चलता हुवा मुँह को स्नित - हास्य जैसा फण फैलाये हुए हो वैसा चित्र बनवाना उचित हैं । अस्तु ।
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मंत्र महिमा की व्याख्या
मन्त्र प्रवाद पूर्व में से अनेक मन्त्र पूर्वाचार्यों ने उद्धृत किये हैं, और उनकी सिद्धि प्राप्ति के हेतु कल्प बना कर मन्त्र आराधन में विधि विधान जानने के लिये विशेष सुविधा करदी है ।
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