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धंटाकर्ण कल्प
ओर के खवे पर रहती है, इस तरह के विधान को मममे बिना चित्र बनवाये जाय तो जो लोग चित्रकारों में निष्णात हैं वह ऐसी चित्र कला की सराहना नहीं करते, वीर पुरुष के वेष को और जो शम्त्र शोभा के लिए अंग पर चित्रित किये जाते हैं उनको व्यवस्थित-विधान के अनुमार बताना चाहिए, अविधि से बने हुए चित्र आलम्बन में रखने से कार्य की सिद्धि नहीं होती अतः आराधन करने वाले को इस ओर लच्य देना चाहिए ।
घंटाकर्ण शब्द का साधारण अर्थ तो यही है कि जिसके सिर हिलाने से कान के पास में घंटा बजता हा, , और विधान में भी घंटा को विशेष महत्व दिया है, ऐसा
मी वर्णन किया गया है कि ढोगें में जब रोग फैल जाता है तो मन्वाक्षर लिख घंटा मन्त्रित कर एक पशु के गले में बांधने से उसके चलने से जो आवाज निकलेगी जिम पशु को सुनने में आवेगी वह गेग मुक्त हो जायगा, यह विधान घंटाकर्ण शब्दार्थ से सम्बन्ध रखता है । अस्तु __घंटाकर्ण देव समकिती हो या न हो हमें इससे प्रयोजन नहीं है, परन्तु इतना तो अवश्य जान लेना चाहिए कि जिन ऊँ ह्रीं में पंच परमेष्टि और चौबीस जिनकी स्थापना है, उनका अनादर घंटाकर्म देव कभी नहीं करता । जिन
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