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घटाकगा काप
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अन्य किसी आवश्यक कार्य पूर्ति के हेतु इस प्रकार को योजना की हो तो इस विषय के निणात महानुभावों को पूछ लेना चाहिये और पालम्बन में रखने के लिए तो जैसा शुद्ध स्वरूप बताया है वैमा ही रखना उचिा है. जिसका स्वस्य मूर्ति निर्माण शिल्प के अनुसार हो । कर परिवर्तन देव को प्रिय नहीं होता, साधारण मनुष्य को भी शरीर का शाभा-स्वरूप प्रिय होता हैं छोट से पड़ सब को निज स्वरूप व्यवस्थित होतो प्रियकारी होता है, इसी तरह देव को निज का स्वरूप परिवर्तन प्रियकारी नहीं होता, शास्त्रों में चोवीस जिन भगवंत के यक्ष यक्षणियों का स्वरूप और पोडश देवियों के स्वरूप का वर्णन विस्तार से प्रतिपादित है, तदनुसार मूर्तियां व चित्र' बनवाये जाते हैं, जैन धर्मानुयायियों ने साथ-धायक के स्वरूप का कथन भी किया है तदनुसार वेप धारण किया हुआ हो तो पहिचान शीघ्र हो जाती है, मनस्वी धारणा से देव के स्वरूप का परिवर्तन नहीं करना चाहिये और प्राचीन क्रिया के अनुसार ही चित्र लेखन करना उचित है।
वीर पुरुष तलवार-खांडा आदि कमर पर बांयी ओर बांधते हैं,-बांयी ओर बांधने से दाहिने हाथ से निकाल सकते हैं और म्यान कमर पर लटकती रहती है, ढाल वायी
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