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घंटाकण-कल्प
बरतन पर रख पूर्व दिशा की तरफ मुख करके नीचे लिखा हुवा मन्त्र इक्कीम बार पढे ।
॥ ऊँ हाँ ह्रीं क्लीं गंगेजलाय नमः ॥
मन्त्र पग होते ही बरतन पर चन्दन चढाना और पुष्प पूजा कर घंटाकर्ण देव को नमन कर उपयोग सहित जयणा से शरीर शुद्धि करे, स्नान किये बाद वगर पानी के छींटे न लग जाय जिसका पूरा ध्यान रखे, स्नान की जगह जीवात वाली या लीलण फुलण वाली हो तो विगधना न हो जाय इस बात का पूरा ध्यान रख । वस्त्र शुद्धि
जैसा कार्य हो उसकी सिदि में जैसे वस्त्र
- पहनने का विधान हो वैसे ही वस्त्र काम में लेना चाहिए, जिमका वर्णन मन्त्र के विधान में किया जायगा परन्तु वस्त्र नये पहिनना चाहिए, और स्नान क्रिया करने से पहले शुद्ध बना कर तैयार रखना चाहिए, जब नान क्रिया से निवृत हो जाय तब वस्त्रों को एक थाली में रख-थाली बाजोट पर रख धूप से सुगन्धित करके दाहिना हाथ वस्त्र पर रख नीचे लिखा मन्त्र इक्कीस बार पढे।
॥ॐ ह्रां ह्रीं आनन्ददेवाय नमः ॥
इस प्रकार जाप पूरा होते ही घंटाकर्ण देव को नमन कर कपडे पहिन लेवे, तिलक का मन्त्र प्राचीन प्रत में
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