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बंटाकरा-कल्प
न हो तो ध्यान शुद्ध और शांति से हो सकता है, ध्यान करते समय मन बचन काया के योगों की एकाग्रता हो जाय तो मंत्र मिद्धि में भी विलम्ब नहीं होगा।
ऊपर बताये अनुमार स्थान की नाज़ नहीं हो मक तो किसी मकान में स्थान शुद्ध देखना, एकांत कमरा हो जहां अन्य किसी का आना जाना न हो और ऐसे चित्रतसवीरें भी लगी हुई न हो कि जिनके देखने से ध्यान से चलिन हो जाय, इस तरह की व्यवस्था भृमिनल के मकान में न हो सके तो ऊपर की मंजिल का मकान हो वहां ध्यान करे परन्तु पवित्रता में किसी भी तरह का कमी नहीं होना चाहिए । कमरा चीकार मिल जाय तो ष्ट है यदि चोकार न मिले तो ऊपर पाट या गाडर्म पडे हों उनके नीचे नहीं बैठे, वाचा या देय स्थान हो तो चाकोर देखने की आवश्यकता नहीं है। सोग मार ध्यान की शरुअात अच्छे मुहूर्त में करना
चाहिए, उत्तम कार्य में योग भी उत्तम हो तो काय सिद्ध होता है, सिद्धि योग, अमृत मिति योग, रवि योग, गजयोग, आनंद योग, श्रीवत्सयोग, छत्र योग
आदि शुभ माने गये हैं, साथ ही चन्द्रबल भी ठीक हो लग्न भी चर स्वभाव। दो ना अच्छा है, इस तरह के शुभ
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