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सम्बन्धी आराधना आदि का विधान भी इच्छुक जन को बता देते थे, वैसे आप यति समुदाय में दीक्षा मान पाये हुए थे और उस समय की समुदाय में भी आपने खूब मान पाया था-यति समुदाय में यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र जैसे विषय की जानकारी स्वाभाविक ही अधिक होती थी, और इस कारण से जनता भी अधिक आकर्षित हो जाती थी, आपके प्रति भी जनता का विशेष बहुमान था, आपके ऐसे संस्कार दृढ जम रहे थे कि यति समुदाय में परिग्रह की मात्रा विशेष रूप में रहने लगी है, कि जिसके कारण पांचवें परिग्रहव्रत का पालन बराबर नहीं होता, आपकी वैराग्य भावना दृढ होती जाती थी जिसके कारण आपको यह बात अखरती थी कि पंच महाव्रत के पालने में त्रुटियां क्यों आती हैं ? आत्महित के लिये लिये हुए महाव्रत सम्पूर्ण न पाले जांय और किसी न किसी बहाने से अपवाद की ओट में स्वार्थ सिद्ध किया जाय तो गुरुचरणों में जिन भगवंत की साक्षी से ली हुई प्रतिज्ञा का भंग होता है वैसे आप जैन शास्त्रों के अभ्यासी तो थे ही, सिद्धांत को भी समझते थे, यति दीक्षा के बाद बहुत कुछ अनुभव भी लिये हुए थे, सोचते-सोचते दृष्टि उस तरफ गई कि जहां जैन समाज में एक सूर्य चमक रहा था, और जिसकी कीर्तिप्रभा
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