________________
ग
1
जैन समाज में विशेष फैल रही थी, मूरत की जैन समाज पर जिनकी असीम कृपा थी और सम्बई से प्रथम पदार्पण के कारण जैन जगत में जिनका नाम सुवर्णाक्षर से लिखा गया है, हां ! उम समय में ऐसी कोई दुकान या मकान बम्बई की जैन समाज में नहीं था कि जहां पर इस महान तपस्वी शासन रक्षक महात्मा का चित्र न हो, जिनका दुबला शरीर
ओर लटकती त्वचा जिनके हाड धनाजी की तरह खडखडाती हुई पांसलियां दुर्बलता का दृष्य बता रही थी ऐसे महात्मा श्री मोहनलालजी महाराज की तरफ जिनकी दृष्टि गई__ धन्य गुरुदेव ! आपने जैन शासन की उन्नति में कमी नहीं की, जिसके सिर पर आपके हाथ से वासक्षेप गिर गया उसको आनंद मंगल हो ही जाता था, ऐसे प्रतापी गुरु देव के चरणों में आप भी झुक गये, सोने में सुगन्ध जैसा मिलान हो तो ओर क्या चाहिए ? गुरु महाराज ने स्वहस्त से दीक्षित कर श्रीमान् यश मुनिजी महाराज (आचार्य) के शिष्य बनाये । आप नूतन दीक्षा से विशेष आनंद पाये
और उत्तरोतर चढ़ती कला से आप आगे बढते रहे, समाज ने चमकता सितारा देख पन्यास पद और अंत में प्राचार्य
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com