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घंटाकर्ण-कल्प
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हवन किया का स्थान बाग हो, जलाशय के पास
-हो, देव मन्दिर हो, या किसी उत्तम वृक्ष के नीचे हो. भमि शद्धि वरावर कर के पवित्र बनाना चाहिए हवन के लिए जो सामग्री एकत्र की हो तांबे की थाली में रखना चाहिए, हवन कुंड बनाकर उसमें मंगल मिट्टी बिछाकर पलास, पीपल या चंदन की लकडी के टुकडे जमा कर अष्ट द्रव्य से हवन कुंड की पूजा करना और आसन पर स्थिरता कर कपूर की ज्योति से अग्नि प्रज्वलित करना, हवन करते समय एक दो सहायक अवश्य चाहिए, उनके आसन भी हवन मंडप में लगाना
और जब पाहुति दी जाय उसके साथ ही स्वाहाः पल्लव एक साथ ही बोलते रहें, इस तरह करने से मंत्र शक्ति बढती है, और मंत्र सिद्ध होता है। हवन करते समय घंटाकर्ण देव का चित्र ओर यंत्र हसन मंडप में अवश्य स्थापन करना चाहिए यह विधान सामान्य तरीके पर लिखा गया है, जो मनुष्य इस तरह की क्रिया कराने में निष्णात हों और विशेष प्रकार से तैयारी करके उत्तर क्रिया कर सकते हों उनही की सानिध्यता में क्रिया करना चाहिए।
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