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चंटाकर कल्प
का जीव गजा को धर्मोपदेश देने के लिये म्बर्ग
से वापस आया और राजा को समकिती बनाया १५. भगवन्त परमात्मा श्री महावीर के समय में
नागमारथी को स्त्री मुलपा ने पुत्र प्रामि की इच्छा से देवी की आराधना की थी, देवने प्रसन्न होकर उसको बीम गालियां दी थी जिमसे
मुलमा वनीस पुत्रों की माता हुई। इस तरह से बहुत से उदाहरण मिलते हैं, फिर भी कोई नहीं माने और अश्रद्धा ही बता रहे तो यह सब भाग्य का दोष है । कई बार ऐसा भी अनुभव में आया है कि मुनि महाराज, प्राचाय महागज आदि इस विषय में कहते हैं कि महावत लिये वाद देव आगधन करने का कोई प्रयोजन नहीं रहता, उनको ऊपर बताये हुए उदाहरण में समझ लेना चाहिए, और विशेषतया छटुं गुणठाणे तक पंच महावत धारी देव की आराधना करते हैं, सातवें गुण ठाण पर पहुंचे बाद देव अाराधना की इच्छा नहीं रहती । हां ! यह बात मर्ग है कि आगधन करने की शक्ति न रही हो या तन प्रकार के साधन का अभाव हो और हम विषय के निष्णात भी न हो तो यहां एक उत्तर बचाव के लिये है कि पांच महावनी का यह काम नहीं है। ।
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