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घंटाकर्ण-कल्प
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विजयजी महाराज ने गंगानदी के तट पर सरस्वती देवी की आराधना की थी और देवी
ने प्रसन्न हो वरदान दिया था। ११. प्रभावक चरित्र में वर्णन आता है कि श्रीमान्
बप्पभट्ट मूरि महाराज जो आम राजा के समय में हुए हैं, जिन्होंने सरस्वती देवी की आराधना
कर वरदान दिया था। १२. सोलह सतियों को कई बार देव-देवियां सहा
यक हुई हैं। १३. उत्तराध्ययन सूत्र की टीका में वर्णन आता
है कि एक प्राचार्य महाराज कालधर्म को प्राप्त हुए उस समय स्वशिष्य के योग चल रहे थे वह अधूरे रह गये सो पूर्ण कराने को आये
और छ महीने तक साधू शरीर में रह कर शिष्यों को सारी कथा सुना कर पुनः स्वर्ग में गये. इस कथा पर से साधुत्रों को शंका हुई कि क्या मनुष्य मर कर देव हो सकता है ? संभव नहीं इस तरह की श्रद्धा जम जाने से
अव्यक्त निन्हव कहलाये। १४. सिंधु देश के उदायी राजा की रानी प्रभावती
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